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________________ औरनसे क्या? साररूप जे, धन जीवन दो जानो। तिनकी ऐसी थिति जगमें तब, किसमें बुध मद ठानो॥४२॥ मुष्टीसे वह व्योम हनै वा, शुष्क नदीको तिर है। व्याकुल हो, वा मत्च हुआ त,-ष्णोतुर मृगजल पिव है। ऊँचे पर्वतशिखरपवनकर,-कम्पित दीप समानी। धन कॉन्ता सुत आदिकमें मद, कर नर जो है मानी॥४३॥ व्याध-मृगी चपला लक्ष्मीको, भूपतिमृग अपनाई। पुत्रादिक अन मृगन क्रोध कर, मारै ईर्षा लाई ॥ तीर चढ़ाये धनुष भयंकर, भूषित है निश्चै जो। कुपित रूप सन्मुख आया भी, काल न व्याध लखै सो॥४४॥ राजापि क्षणमात्रतो विधिवशाद्रकायते निश्चितम्, सर्वव्याधिविवर्जितोऽपि तरुणोप्याशु क्षय गच्छति । अन्य किं किल सारतामुपगते श्रीजीविते द्वे तयो , ससारे स्थितिरीदृशीति विदुषा कान्यत्र कार्यों मद ॥४२॥ हन्ति व्योम स मुष्टिनात्र सरित शुष्का तरत्याकुल-स्तृष्णाततॊऽथ मरीचिकाः पिबति च प्रायः प्रमत्तो भवन् । प्रोत्तुगाचलचूलिकागतमरुत्प्रेखप्रदीपोपमै-र्य सम्पत्सुतकामिनीप्रभृतिभिः कुर्यान्मद मानव ॥४३॥ लक्ष्मी व्याधमृगीमतीव चपलामाश्रित्यभूपा मृगा , पुत्रादीनपरान्मगानतिरुषा निघ्नन्ति सेर्प्य किल । सजीभूतधनापदुन्नतधनु सलग्नसंहच्छर, नो पश्यान्ति समीपमागतमपि क्रुद्ध यम लुब्धकम् ॥४४॥ मृत्योगोचरमागते निजजने मोहेन य शोककृत् , नो गधोऽपि गुणस्य तस्य बहवो दोषा पुनर्निश्चितम् । दु खं वर्द्धत एव नश्यति चतुर्वर्गो मतेर्विभ्रम , पाप रुक्च मृतिश्च दुर्गतिरथ स्याद्दीर्घससारिता ॥ ४५ ॥ १ स्थिति-हालत । २ भुट्टीसे-मुक्केसे । ३ आकाश । ४ खुश्क-सूखी हुई। ५प्यास कर पीडित हुआ। ६ मरीचिका-मृगतृष्णा । स्त्री। ८ लक्ष्मीरूपी अतिचचल और शिकारीकर पकडी हुई मृगीको ।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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