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________________ (32) इन्द्रियोंवाले, ऊपरकी चार और पांचवीं कान इन्द्रिय, यथा मनुष्य, देव, पशु, पक्षि आदि, इन पञ्चेन्द्रियों के संज्ञी और असंज्ञी दो भेद है / संज्ञी वे है जिनके मन हो अर्थात् जिनमें बुरा, भला विचारनेकी वा इशारों से समझनेकी शक्ति हो / असज्ञी वे है, जिनमे ऐसी शक्ति न हो। __ फिर इन चार प्रकारके त्रसजीवोंके अनेक भेद है, यथा-जलचर, जो जलमें रहे जैसे मछली, मगरमच्छ आदि, थलचर, जो पृथ्वीपर चलते फिरते है, जैसे मनुष्य, पशु आदि, खेचर जो आकाशमे उडते रहे, जैसे पक्षी आदि, उभयचर, जो जल थल दोनोंमे रहे, अथवा आकाश और पृथ्वीमे तथा आकाश और जल में रहे। अजीवतत्व। यह जानना चाहिये कि द्रव्य छै है, (1) जीव (2) अजीव और फिर अजीव के पाच प्रकार है जिन्हें पञ्चास्तिकाय भी कहते है, (1) पुद्गल ( 2 ) धर्म ( 3 ) अधर्म ( 4 ) काल (5) आकाश / इन पाचोंमें पहला अर्थात् पुद्गलरूपी या मूर्तीक है और पिछले चार अरूपी या अमूर्तीक है। __ द्रव्य उसे कहते है जो अपने गुण और पर्याय को लिए हुए हो / जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल, आकाश में से प्रत्येक अपने 2 गुण और पर्याय रखते है, इस लिये द्रव्य कहलाते है। जीव के गुण अनन्त ज्ञान अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अनन्त
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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