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________________ (24) करें, चित्तमेंसे सकल संशयोंको दूर कर दे, अज्ञान रूपी मोहनिद्राको क्षीण कर दें, तत्त्वोंका यथार्थ खरूप जानने का यत्न करे, प्रमाद और इन्द्रियों के विषयसे चित्तको रहित करे, मनको मुक्तिमार्ग में अनुरक्त और सांसारिक देह भोगों से विरक्त करें और विवेकमें लगावें इसके अनन्तर ध्यानका सारांश सुननेसे चित्त पवित्र और शुद्ध होता है / जीवोंके आशय तीन प्रकारके होते है शुभ, अशुभ और शुद्ध / इस भेदसे ध्यान भी तीन प्रकार के है अर्थात्, प्रशस्त अप्रशस्त और शुद्ध / शुभ वा प्रशस्त ध्यानके कारण मनुष्य स्वर्गकी लक्ष्मी को भोगते है और धीरे 2 मोक्षको प्राप्त होते है, अप्रशस्त वा दुर्ध्यानसे मनुष्योको अशुभ कर्म बंधते है और इन अशुभ कर्मोंका क्षीण करना कठिन होता है / जो जीव शुद्ध ध्यानमे लगे हुए है, वे पाप और दुःखोसे छुटकारा पाकर अविनाशी पद और केवलज्ञानको प्राप्त कर लेते है और सदा सुखी रहते है। ___ योगी जन सम्पूर्ण सासारिक इच्छाओको छोड़कर और निर्मोही होकर बन के किसी एकान्त पवित्र और शुद्ध स्थानमें जाकर ध्यान करते है / पृथ्वी ही उनकी सेज है, उनकी भुजा उनका तकिया, आकाश उनका चन्दोआ ग शामियाना, और चान्द उनका दीपक है / वैराग्यरूपी स्त्रीके संग रमण करके सदा आनन्दमे मम रहते है और दिशारूपी स्त्रिया चारों ओर की पवनसे उनपर पंखा झलती रहती है। ऐसा त्यागी राजर्षि राजाकी नाई ध्यानमें रत होकर सुखसे सोता है / यही भाव निम्नलिखित को. कमे प्रकट किया है:
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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