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________________ ( १५ ) मान है और सोच विचार की शक्ति रखता है, उस के शुद्ध और विचारवान् हृदय में पाप का भाव स्वप्न में भी नहीं आसता और बुराई उस के पास को फटक ही नहीं सकती । वस्तुत' सम्वररूपी एक बडा भारी वृक्ष है, जिस में से प्रत्येक प्रकार के दोष सर्वथा जाते रहे है । (१) पाच समिति अर्थात् चलने फिरने, बोलने चालने, खाने पीने, वस्तुओं के लेने देने या उनके उठाने रखने, और मलमूत्र के करने में सावधानी से काम लेना ये पाचों समितिया मिलकर इस वृक्ष की जड है । (२) सयम अर्थात् सामायिक आदि उस का स्कन्ध है । (३) प्रशम अर्थात् विशुद्ध भावरूप उस की बडी २ शाखाए है ( 8 ) उत्तम क्षमादि दश धर्म उस के पुष्प है ( इन दश धर्मों का वर्णन धर्म भावना में किया है ) । और ( ५ ) बारह प्रकार की भावनाएं उस के सुन्दर फल है । ९. निर्जरा भावना । अनादि बीजरूप कर्मों के झड़ जाने को अर्थात् कर्मों के नष्ट हो जाने को निर्जरा कहते है । जहाज मे भरा हुआ पानी जिस प्रकार उलीचकर निकाल दिया जाता है अथवा स्वयं निकल जाता है, इसी प्रकार से आत्मा के साथ सम्बन्धित हुए कर्म परमाणु समय पाकर वय झड जाते है अथवा झडा दिये जाते है । यही निर्ज - रा है । निर्जरा दो प्रकार की है, एक सकाम निर्जरा और दूसरी अकाम निर्जरा । पहली अर्थात् सकाम निर्जरा ऋषि मुनियो के होती है और दूसरी अर्थात् अकाम निर्जरा प्रत्येक संसारी जीवके होती है । I A
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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