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________________ आसव भावना में यह चितवन करना चाहिये कि, आत्मामें कर्म किस तरहसे आते है-आत्मा कर्मों को किस तरह ग्रहण करता है। मन वचन और काय (शरीर ) की क्रिया को योग कहते हैं, और इस योग को ही आस्रव माना है । अर्थात् कर्मों का जितना आगमन होता है वह सब मन वचन काय की क्रिया द्वारा होता है । ये योग अथवा मन वचन काय की क्रियाये दो प्रकार की होती हैं, एक शुभरूप और दूसरी अशुभरूप । सत्य बोलना चोरी नही करना, किसी जीव को नही सताना, ब्रह्मचर्य पालना, परिग्रह नही रखना, इन पाच व्रतोसे, ससारसे विरक्त रहने से, शान्त परिणामोंसे, तत्व विचार करने से, सबसे मित्रत्व रखने से, मध्यस्थभाव रखनेसे, करुणालु रहने से, तथा ऐसे और भी अनेक शुभ भावोसे शुभ आस्रव होता है, और इन के विपरीत झूठ बोलने, चोरी करने, गाली देने, दूसरों को सताने, क्रोध मान माया लोभमें अनुरक्त रहने आदि अशुभ भावों से अशुभ आस्रव होता है। जैसे जहाज छिद्रों के द्वारा जल को ग्रहण करता है उसी प्रकार यह जीव शुभ और अशुभ योगरूप छिद्रों से, मन बचन और काय द्वारा, शुभ, और अशुभ कर्मों को ग्रहण करता है। तात्पर्य यह है कि यद्यपि यह आत्मा शुद्ध केवलज्ञानरूप है और आस्रव से रहित है, परन्तु अनादि कर्म के सम्बन्ध से यह मिथ्यात्व मे फंसा है और मन वचन और काय से अपने में नये कर्मों का आस्रव करता है । जब यह आत्मा इन शुभ अशुभ कर्मों का बाधना छोड़ देता है और केवल अपने खरूप का ध्यान
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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