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________________ ( ११ ) यह निश्चय जान लो कि आत्मा अकेला है, उस का कोई साथी नही है उससे सब भिन्न है । इस लिये अपने से जो पर हैं, उन सब से सम्बन्ध छोडकर केवल आत्मा मे भी अनुरक्त होना चाहिये । भर्तृहरिजीने अपने वैराग्यशतक में क्या ही अच्छी इच्छा प्रगट की है - एकाकी निस्पृहः शान्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः । कदाहं सम्भविष्यामि कर्मनिर्मूलनक्षमः ॥ इसका अर्थ यह है - हे परमात्मा । मै कब अकेला होकर इस संसार से रहित होऊगा, सकल इच्छाओं को त्याग करके कब पूर्ण शान्ति प्राप्त करूंगा, और कब ऐसा होगा कि मेरे हाथ मेरे पात्र और ये चारों दिशाये मेरे वस्त्रो का काम देंगी और मै कर्मों ● का नाश कब कर सकूंगा । अर्थात् मेरी प्रार्थना यह है कि मै सकल वस्तु पात्रवस्त्रादिक का त्याग करके कर्मों का नाश कर दूं और केवलज्ञान प्राप्त करके मुक्त हो जाऊं । ५ अन्यत्त्व भावना । आत्मा और शरीर में घरती आकाश का अन्तर है । आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न है । आत्मा शुद्ध है और सच्चिदानन्द स्वरूप है । आत्मा और शरीरका सम्बन्ध सोने और खोट की नाई अनादिकाल से चला आया है । जब आत्मा इस भेद को विदित कर लेता है और अपने आप को सब से अलग और न्यारा जानने लगता है, तब वह शुद्ध हो जाता है और कर्मरहित होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । मानों उस समय खोट दूर हो जाता है और खरा
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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