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________________ भी अचिरस्थायी है ( जवानी दिन चार की); इन सब बातों पर विचार करके हे बुद्धिमान् पुरुषो ! शीघ्र ही योग में अभ्यास करो अर्थात् आत्मा में लीन होकर परमात्मा में प्रवृत्त हो जाओ, जिस में हम धैर्य और एकाग्रचित्त के द्वारा सिद्धि प्राप्त कर सक्ते हैं। ३ संसार भावना। मनुष्य दुःखरूपी भवसागर मे निरन्तर भ्रमते रहते है, अपने २ कर्मों के अनुसार अनेक प्रकार के शरीरो में जन्म लेते और मरते है, कभी पूर्वके शुभ कमों के कारण स्वर्ग भोगते हैं फिर कुछ काल के अनन्तर नरक में गिर पडते है, फलतः इसी प्रकार भिन्न २ योनियों में पड़कर भिन्न २ दशाएं बदलते रहते है। यह मसार असार है और वस्तुत. अज्ञान और मूर्वता से इस को मंसार मान रक्खा है, झूठी ममता बना रक्खी है, किसी से राग है और किसी से द्वेष । इस राग और द्वेष से कर्म बंधते है और कर्म बंधने से चारों गति अर्थात् देव मनुष्य नरक और पशु लोक मे भ्रमना पड़ता है और अनेक प्रकार के दु.ख और कष्ट सहने पडते है। बुद्धिमान् वे ही है, जो इस ससार में लिप्त नहीं होते विरक्त रहते है और निष्काम कर्म करते है । निम्नलिखित श्लोक में भर्तृहरिजी ने भी इसी भाव को कहा है, भोगास्तुङ्गतरङ्गभङ्गचपलाः प्राणाः क्षणध्वंसिनः स्तोकान्येव दिनानि यौवनसुखं प्रीतिः प्रियेष्वस्थिरा । तत्संसारमसारमेव निखिलं बुद्धा बुधा बोधका लोकानुग्रहपेशलेन मनसा यत्नः समाधीयताम् ॥
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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