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________________ (७) शुभ कर्म करते है अर्थात् ऐसे कार्य करते है जिनका करना योग्य है । ये शुभ कर्म भी किसी विशेष सांसारिक अभिप्राय वा फल की प्राप्ति के लिए नहीं करते केवल अपना कृत्य समझ कर करते है । धन्य है वे पुरुष जो परोपकार के लिए अपना तन मन धन सब कुछ अर्पण कर देते है और जहातक बनता है, इन सासारिक वस्तुओं को छोड कर अपने आत्माका ध्यान करते है और परमात्मा मे लीन होकर केवलज्ञान और परम आनन्द को प्राप्त करते है। २ अशरण भावना। इस का यह तात्पर्य है कि मृत्यु काल या यम सब से अधिक बलवान् है, इस काल ने किसी को नही छोडा । बडे २ शूरवीर, पराक्रमी राजा, महाराजा, इन्द्रादिक देव और शलाका पुरुष अर्थात् तीर्थकर, ऋपि मुनि आदि सब एक २ करके इस के भेट हो गए । लाख यल करने पर भी यह मौत देवताओ से न टली, फिर मनुष्य की तो इस के आगे क्या सामर्थ्य है । इस कारण तीनों लोको में कोई भी ऐसा नही दीखता जो हमे इस कठोर मौत के पजे से छुडाए । यह मौत प्रत्येक दशा में उपस्थित है । बच्चा हो जवान या बूटा, धनी हो या दरिद्री, शूरमा हो या डरपोक, सब इस के आगे बराबर है, यह किसीको नही छोडती । इस लिए इस के कोप से बचकर कहा जा सक्ते है और किस की शरण ले सक्ते है ? हमें इस जगत् मे केवल दो ही वस्तुओ का आश्रय है एक शुद्ध आत्माका और दूसरा पंच महापरमेष्ठि का । अर्थात् हमें चाहिये कि हम अपने मन
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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