SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५) अब हम इन भावनाओं का वर्णन यथाक्रम संक्षेप रीति से लिखते है: अनित्य भावना का वर्णन करने से पहले यह बताया गया है कि इस संसार को कष्ट और दुःखों से भरा हुआ देख कर इस में अधिक लिप्त नहीं रहना चाहिए । जहां तक हो सके समता भाव [अर्थात् दु.ख और सुख में शान्ति ग्रहण करना वा प्रत्येक अवस्था में धीर और शान्त रहना और सब को एक दृष्टि से देखना] और निर्ममता भाव [ अर्थात् सांसारिक वस्तुओं से प्रीति न करना वा उन से विरक्त रहना ] ग्रहण करने चाहिये और अपने हृदय को शुद्ध और पवित्र रखना चाहिये, जैसे भर्तृहरि जी निम्नलिखित श्लोको में समता और निर्ममता बताते है: अहाँ वा हारे वा बलवति रिपो वा सुहृदि वा, मणो वा लोष्ठं वा कुसुमशयने वा दृषदि वा, तृणे वा स्टेणे वा मम समदृशो यान्ति दिवसाः कचित्पुण्यारण्ये शिव शिव शिवेति प्रलपतः ॥ मही रम्या शय्या विपुलमुपधानं भुजलता, वितानं चाकाशं व्यजनमनुकूलोऽयमनिलः । स्फुरद्दीपश्चन्द्रो विरतिवनितासङ्गमुदितः,, सुखं शान्तः शेते मुनिरतनुभूतिर्नृप इव ॥ इस मन की शुद्धि और पवित्रता के लिए १२ भावनाओंका भली भाति समझना और उन पर चलना अवश्य है । इन में से पहली भावना अनित्य भावना है: -
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy