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________________ (१६) नहीं बाह्य औषधादिक तो असाता कर्मके मंद होते किंचित् काल कोऊ एक रोगळू उपशम करै अर यो देह अनेक रोगनिकरि भस्या हुवा है अर कदाचित् एक रोग मिट्या तो हू अन्य रोगजनित घोर वेदना भोगि फेर हू मरण करना ही पड़ेगा तातै जन्मजरामरणरूप रोगईं हरनेवाला भगवानका उपदेशरूप अमृतहीका पान करूं अर औषधादि हजारां उपाय करते हू विनाशीक देहमैं रोग नहीं मिटैगा तातैं रोगआर्ति उपजाय कुगतिका कारण दुयान करना उचित नाहीं रोग आवते हू बड़ा हर्ष ही मानो जो रोगहीके प्रभावतें ऐसा जीर्ण गल्या हुवा देहतैं मेरा छूटना होयगा रोग नहीं आवै तो पूर्वकृत कर्म नहीं निर्जरै अर देहरूप' महा दुगंध दुःखदाई बंदीगृह" मेरा शीघ्र छूटना हू नहीं होय है अर यो रोगरूप मित्रको सहाय ज्यों ज्यों देहमैं वधै है त्यों त्यों मेरा रागवंधनतें अर कर्मबंधन” अर शरीरबंधनतें छूटना शीघ्र होय है अर यो रोग तो देहमैं है इस देहळू नष्ट करैगा मैं तो - अमर्तीक चैतन्यस्वभाव अविनाशी हैं जाता अर जो यो रोगजनित दुःख मेरे जाननमैं आवै है सो मैं तो जाननेवाला ही हूं याकी लार मेरा नाश नहीं है जैसैं लोहकी संगतिते अमि हू घणनिका घात सहै है तैसे
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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