SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक रक्षपर रात्रिसमय ज्यौ, पक्षी आय बसें है। मांत होय तब शीघ्रहि उठ सब, दशदिश गमन करैं है। त्यौं हि जीव इक कुलमें थितिकर, मरकर अन्य कुलनमें । जाय बसै, किस हेत सुबुधजन, शोक करै तब मनमें ॥१६॥ तम अज्ञान छयो जगवन जह, दुःख-व्योल विचराहीं। दुर्गतिगेह सहाइ कुपथकर, तहँ सब जीव भ्रमाहीं । तामधि निर्मल ज्ञान प्रकाशक, गुरुवच दीप जगें है। ताको पाय विलोक सुपथको, सुखद सुबुध लहैं है ॥१७॥ जो निजकर्मरचित है भविजन, मरणघड़ी जग माही। जीव ताहिमें मरत नियमकर, पूर्व पिछाड़ी नाहीं॥ तो भी मूरख ठान शोक अति, बहुदुखभागी होई । काल पाय इम मरण करै यदि, अपना प्रिय जन कोई ॥१८॥ तरुसे तरुपर पक्षि भ्रमर ज्यौ, पुष्पन पर उड़ जाहीं। त्यौं हि जीव भव छोड़ अन्य भव, धारै या जगमाहीं॥ सकलासु दिक्षु। स्थित्वा कुले बत तथाऽन्यकुलानि मृत्वा, लोका श्रयन्ति विदुषा खलु शोच्यते क ॥१६॥ दु.खव्यालसमाकुल भववन जाड्यान्धकाराश्रित, तस्मिन्दुर्गतिपलिपाति कुपथैर्धाम्यन्ति सङ्गिन । तन्मध्ये गुरुवाक्प्रदीपममलज्ञानप्रभाभासुर, प्राप्यालोक्य च सत्पथ सुखपद याति प्रबुद्धो ध्रुवम् ॥१७॥ यैव स्वकर्मकृतकालकलाऽत्र जन्तुस्तत्रैव याति मरण न पुरो न पश्चात् । मूढास्तथापि हि मृते स्वजने विधाय, शोक पर प्रचुरदु खभुजो भवन्ति ॥ १८ ॥ वृक्षावृक्षमिवाण्डजा १ जब सबेरा होता है । २ हाथी । ३ दुर्गतिमें ले जानेवाले खोटे मागों में हो कर। ४ गुरुओंका वचनरूपी दीपक जल रहा है अर्थात् परमागम विद्यमान है। ५ मोक्षपद ।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy