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________________ (११) देह है तिसमें बड़ा असाताका उदय भोगिये है सो मरण नाम उपकारी दाता विना ऐसी असाता• दूर कौन करै अर जे सम्यग्ज्ञानी हैं तिनकै तो मृत्यु होनेका बड़ा हर्ष है जो अब संयम प्रत त्याग शीलमैं सावधान होय ऐसा यत्न करै जो फेरि ऐसे दुःखका भस्या देहको धारण नहीं होय सम्यग्ज्ञानी तो याही• महा साताका उदय मानै है ॥ ८॥ सुखं दुःखं सदा वेत्ति देहस्थश्च स्वयं व्रजेत् । मृत्युभीतिस्तदा कस्य जायते परमार्थतः॥ अर्थ, यो आत्मा देहमैं तिष्ठतो हू सुखकू तथा दुःखकू सदा काल जाने ही है अर परलोकप्रति हू स्वयं गमन करै है तो परमार्थतें मृत्युका भय कौनकै होय । भावार्थ, जो अज्ञानी बहिरात्मा है सो तो देहमैं तिष्ठता हू मैं सुखी मैं दुखी मैं मरूं हूं मैं क्षुधावान मैं तृषावान मेरा नाश हुवा ऐसा मानै है अर अंतरात्मा सम्यग्दृष्टी ऐसैं मान है जो उपज्या है सो मरैमा पृथ्वीजलअग्निपवनमय पुद्रलपरमाणुनिके पिंडरूप उपज्यो यो देह है सो विनशैगो मैं ज्ञानमय अमूर्तीक आत्मा मेरा नाश कदाचित् नहीं होय ये क्षुधातृषावातपित्तकफादिरोगमय वेदना पुगलकै है मैं इनका ज्ञाता हूं मैं यामैं अहंकार पृथा करूं हूं इस शरीरकै अर मेरे
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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