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________________ (८) छांहि दिव्य वैक्रियक देहमैं प्राप्त होय नाना सुख संपदाकू प्राप्त होय है सो समस्त प्रभाव आत्मज्ञानीनिकै समाधिमरणका है समाधिमरण समान इस जीवका उपकार करनेवाला कोऊ नहीं है इस देहमैं नाना दुःख भोगना अर महानरोगादि दुःख भोगि करि मरना फिर तिर्यच देहमैं तथा नरकमैं असंख्यात अनंतकालताई असंख्यात दुःख भोगना अर जन्ममरणरूप अनंत परिवर्तन करना तहां कोऊ शरण नहीं इस संसार परिभ्रमणसों रक्षा करनेकू कोऊ समर्थ नहीं है कदाचित् अशुभकर्मका मंद उदयतें मनुष्यगति उच्चकुल इंद्रियपूर्णता सत्पुरुषनिका संगम भगवान् जिनेन्द्रका परमागमका उपदेश पाया है अब जो श्रद्धान ज्ञान त्याग संयमसहित समस्त कुटुंब परिग्रहमैं ममत्वरहित देहरौं भिन्न ज्ञानखभावरूप आत्माका अनुभवकरि भयरहित च्यार आराधनाका शरण सहित मरण हो जाय तो इस समान त्रैलोक्यमैं तीन कालमैं इस जीवका हित है नहीं जो संसार परिभ्रमणतें छूट जाना सो समाधिमरण नाम मित्रका प्रसाद है ॥६॥ मृत्युकल्पद्रुमे प्राप्ते येनात्मार्थो न साधितः । निमग्नो जन्मजम्बाले सपश्चात् किं करिष्यति ॥७॥
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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