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________________ LAM (१५) धारिये और इस बातका दिलमे कमी ख्याल भी नहीं लाना चाहिये कि अमुक मनुष्य इस धर्मके धारण करने के अयोग्य है पा इस धर्मका पात्र नहीं है । क्योकि यह धम प्राणीमात्रका! धर्म है। यदि काई मनुष्य पूरी तौरपर इस धर्मका पालन नहीं कर सकता है, तथापि थोड़ा बहुत जरूर पालन कर सकता है। कमसे कम यदि उसका श्रद्धान मी ठीक हा जायगा, मो उसस बहुत काम निक्ल जायेगा और वह फिर धीरे २ यथावत् पाचारण करने में भी समर्थ हो जावेगा। दूसरे नीतिका यह वाक्य है कि " भयोग्यः पुरुषों नास्ति योजकस्तत्र दुलर्भः। , अर्थात कोई भी मनुष्य स्वमावले अयोग्य नहीं है। परन्तु किसी मनुष्यका योग्यताकी भोर गाना या किसीकी योग्यतासे काम लेना यही कठिन कार्य है। और इसीपर दूमेरे मनुष्यकी योग्यताकी परीक्षा निर्भर है। इसलिये यदि हम किसी मनुष्यको जैनधर्म धारण न करावे या किसी मनुष्यको जैनधर्मका भद्धानी न बना सके, तो समझना चाहिये (कि यह हमारी ही भयोग्यता है । इसमें उस मनुष्य का कोई दोष नहीं है और न इसमें जैनधर्महीका कोई अपराध सकता है। इसलिये इम अपकबिचार और बालख्यालका बिल्कुल हृदयसे निकालकर फेंक देना चाहिये कि, अमुक मनुष्य को तो जैनधर्म बतलाया जाये और अमुकको नहीं । प्रत्येक मनुष्यको जैनधर्म पतलाना चाहिये और जैनधर्मका श्रदानी । बनाना चाहिये । क्योकि यह धर्म प्राणीमात्रका धर्म है- किसी खास जाति या देशले सम्बन्धित नहीं है। यहांपर सब प्रकारके मनुष्योंको जैनधर्मका श्रद्धानी बनानेसे। हमारे किसी भी माईको यह समझकर भयभीत नहीं होना चाहिये [कि ऐसा होनेसे सबका खानापीना एक हो जावेगा । खानापीना) ----
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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