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________________ १२९ सू. ८-४-२३५] स्वोपज्ञवृत्तिसहितम् सृजो रः॥ ८।४।२२९॥ सृजो धातोरन्त्यस्य रो भवति ॥ निसिरइ । वोसिरइ । वोसिरामि ॥ २२९ ॥ शकादीनां द्वित्वम् ।।८।४ । २३०॥ शकादीनामन्त्यस्य द्वित्वं भवति ॥ शक् । सक्का ॥ जिम् । जिम्मइ ॥ लग् । लग्गइ ॥ मग । मग्गइ ॥ कुप् । कुप्पइ ।। नश् । नस्सइ ॥ अट् । परिअट्टइ । कुट् । पकोट्टइ ॥ तुट् । तुट्टइ ॥ नट् । नट्टइ ।। सिव् । सिव्वइ इत्यादि ॥ २३० ॥ स्फुटि-चलेः ॥ ८।४ । २३१ ॥ अनयोरन्त्यस्य द्वित्वं वा भवति ॥ फुट्टइ फुडइ । चल्लइ चलइ ॥२३१॥ प्रादेर्मीलेः ॥ ८ । ४ । २३२ ॥ प्रादेः परस्य मीलेरन्त्यस्य द्वित्वं वा भवति ॥ पमिल्लइ पमीलइ । निमिल्लइ निमीलइ । संमिल्लइ समीलइ । उम्मिल्लइ उम्मीलइ ॥ प्रादेरिति किम् । मीलइ ॥ २३२ ॥ ___उवर्णस्यावः ॥ ८ । ४ । २३३ ॥ धातोरन्त्यस्योवर्णस्य अवादेशो भवति ॥ ढुङ् । निण्हवइ ॥ हु । निह - वइ ॥ च्युङ् । चवइ ॥ रु । रवइ ॥ कु । कवइ ॥ सू । सवइ । पसवइ ।। २३३ ।। _ ऋवर्णस्यारः ॥ ८॥४॥२३४ ॥ धातोरन्त्यस्य ऋवर्णस्य अरोदेशो भवति ॥ करइ ॥ धरई । मरइ वरइ । सरइ । हरइ । तरइ । जरइ ॥ २३४ ॥ __ वृषादीनामरि : ॥ ८।४।२३५ ॥ वृष इत्येवंप्रकाराणां धातूनाम् ऋवर्णस्य अरिः इत्यादेशो भवति ॥ वृष् । वरिसइ ॥ कृष् । करिसइ ॥ मृष् । मरिसइ ॥ हृष् । हरिसइ ॥ येषामरिरादेशो दृश्यते ते वृषादयः ॥ २३५॥
SR No.010651
Book TitlePrakrit Vyakaranam
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorParshuram Sharma
PublisherMotilal Laghaji
Publication Year
Total Pages343
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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