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________________ [167] कमल कलियों के हरितवर्ण तथा प्रियङ्गु पुष्पों के पीत वर्ण का वर्णन न करना : कमल कलियों के हरितवर्ण का कवियों द्वारा वर्णन नहीं किया जाता। कलियों की श्वेतिमा में ही सौन्दर्य इसका कारण हो सकता है। इसके अतिरिक्त कलियों का पत्रों से वैषम्य दिखलाने के लिए ही सम्भवतः कलियों के हरितवर्ण का वर्णन नहीं हुआ। प्रियङ्गु पुष्पों के पीतवर्ण का वर्णन न करने में भी कवियों का सुन्दर को ही प्रस्तुत करने का सभी कवियों में स्थित कोई समान भाव ही कारण रहा होगा। कविजगत् की एक परम्परा अनेक स्थानों में पाई जाने वाली वस्तुओं का एक स्थान में वर्णन रूप भी है। मकरादि का केवल समुद्र में वर्णन : मकरादि जीव नदी में भी पाए जाते हैं, किन्तु कविगण उनका केवल समुद्र में ही वर्णन करते हैं। इस विषय के सम्बन्ध में कवियों की औचित्य को प्रस्तुत करने की भावना का समावेश माना जा सकता है। मकरादि की विशालता तथा भयंकरता से समुद्र की विशालता का ही सम्बन्ध हो सकता है, नदियों का नहीं। इसी कारण कवि समुद्र में ही मकरादि का वर्णन करते हैं नदी में नहीं, ऐसी सम्भावना है । ताम्रपर्णी नदी ही मोतियों का स्थान : मोतियों का स्थान कवि परम्परानुसार केवल ताम्रपर्णी नदी में ही माना गया है, किन्तु वस्तुतः मोतियाँ अन्य स्थानों में भी पाई जाती है। अतः केवल ताम्रपर्णी नदियों में ही मोतियों की स्थिति की कवियों द्वारा मान्य स्वीकृति का ताम्रपर्णी नदी में मोतियों का आधिक्य, सौन्दर्य अथवा इसी प्रकार का अन्य कोई विशेष कारण हो सकता है। केवल मलयाचल में ही चन्दन की उत्पत्ति : कवि चन्दन का उत्पत्ति स्थान केवल मलयाचल को ही स्वीकार करते हैं, किन्तु चन्दन की उत्पत्ति के स्थान मलयाचल के अतिरिक्त अन्य भी है मलयाचल में उत्पन्न चन्दन सम्भवतः अन्य
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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