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सम्पन्न आभ्यासिक कवि बनता है। बुद्धिमान् सारस्वत कवि के लिए राजशेखर के ग्रन्थ की अधिक उपादेयता नहीं है।
राजशेखर के ग्रन्थ में अनावश्यक विषय विस्तार की प्रवृत्ति बहुत अधिक है। विभिन्न विषयों के भेद विभेद उनकी इसी प्रवृत्ति के सूचक है। उनकी इसी प्रवृत्ति के अन्तर्गत कवियों का गुण की दृष्टि से किया गया भेद विवेचन सम्मिलित है। इस संदर्भ में केवल सामान्य स्थूल दृष्टि से कविभेद प्रस्तुत किए गए है। इनका पूर्ण कवि से जो वस्तुत: महाकवि हो कोई सम्बन्ध नहीं है। उनके गुण केवल सामान्य कवियों से सम्बद्ध हैं। कवियों में प्राप्त काव्यरचना सम्बन्धी गुणों के आधार पर उन्होंने कवियों के कनिष्ठ, मध्यम एवं उत्तम होने का मापदण्ड प्रस्तुत किया है। किन्तु वस्तुत- गुणों की संख्या पर आधारित कवियों की यह श्रेणी कवियों के महत्व का मापदण्ड नहीं हो सकती। कवियों को किसी निश्चित सीमा में आबद्ध नहीं किया जा सकता। कभी कवि को केवल दो महत्वपूर्ण गुण ही श्रेष्ठ बना सकते हैं, किन्तु कभी इनसे अधिक पाँच छ: गुणों के द्वारा भी ऐसा सम्भव नहीं होता। आनन्दवर्धन आदि काव्यशास्त्र के सैद्धान्तिक विवेचन से सम्बन्ध रखने वाले आचार्य कवि की कनिष्ठता एवम् श्रेष्ठता आदि का मापदण्ड चित्रकाव्य एवं ध्वनिकाव्य को मानते हैं, गुणों की संख्या को नहीं। गुणों की संख्या के आधार पर कवियों को निम्नता एवं उत्कृष्ठता की सीमा में आबद्ध कर देना वैषयिक सूक्ष्म विवेचन नहीं है। गुणों की संख्या नहीं, किन्तु गुणों के सौन्दर्य का परिमाण ही कवियों की श्रेष्ठता एवं निम्नता की कसौटी हो सकता है। किसी विषय की सूक्ष्म विवेचना उसके भेदों की अधिकता एवम् विस्तार पर आधारित हो यह आवश्यक नहीं है।
आचार्य राजशेखर ने कवि की दिनचर्या को एक विशिष्ट रूप में नियमित करके प्रस्तुत किया है। किन्तु दैनिक कार्यों के नियमन की सभी कवियों के लिए आवश्यकता होने पर भी उसका सभी के लिए एक सामान्य रूप निश्चित नहीं किया जा सकता। अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार प्रत्येक कवि की दिनचर्या के रूप भिन्न हो सकते हैं। राजशेखर के दिनचर्या विवेचन में से केवल यही तात्पर्य कवि के लिए ग्राह्य हो सकता है कि उन सभी की दिनचर्या में काव्यशास्त्र आदि के अध्ययन, काव्यरचना के अभ्यास, काव्यनिर्माण तथा काव्य लेखन को नियमित स्थान मिलना चाहिए, यद्यपि प्रत्येक कवि अपनी दिनचर्या का स्वयं नियमन करने के लिए स्वतंत्र भी होता है। राजशेखर द्वारा