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________________ प्रयत्न किया, उन्हे अपने दृष्टिकोण और साधनाओ मे परिचित कराया और वधुओ के भ्रामक विचारो का निराकरण करते हुए जम्बूकुमार ने सत्य को प्रकाशित किया। आठो वधुओ ने अपना मन्तव्य आख्यायिकाओ के माध्यम से स्थापित किया था और जम्बूकुमार ने उनका प्रत्याख्यान भी ८ कथाओ के माध्यम से किया। ये १६ कथाएं ही इस पुस्तक की प्रधान उपजीव्य रही हैं । स्पष्ट है कि एक दृढसकल्पी विरक्त को उसके मार्ग से च्युत करने के लिए कितने सशक्त तर्को की अपेक्षा रही होगी। उन्ही तर्को को वधुओ ने कथारूप दिया है। प्रत्येक कथा के उत्तर मे जम्बूकुमार द्वारा प्रस्तुत कथा भी कितनी प्रबल रही होगी, इसका इस तथ्य से सहज ही अनुमान हो जाता है कि अन्तत ये सभी वधुएँ पति के विचारो से प्रभावित होकर स्वय विरक्त हो गयी और पति के सग ही उन्होने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। ये कथाएँ जैन पुराणो का आधार रखती है, किन्तु इनका सम्बन्ध सम्पूर्ण मानवजाति से है। सभी के लिए सन्मार्ग दिखाने की क्षमता इनमे है । अतः इन कथाओ को जैनमतानुयामियो तक मर्यादित समझना औचित्यपूर्ण नहीं होगा। सत्य तो सत्य ही होता है । उनका वही एक स्वरूप सार्वदेशिक होता है, सार्वकालिक होता है और सभी के लिए वह समान रूप से उपयोगी, लाभकारी और प्रेरक होता है । इन कथाओ के साथ भी यही है। इन कथाओ के माध्यम से आर्य जम्बूस्वामी का अन्तरगी चित्र स्वत ही प्रस्तुत हो जाता है। इसी चित्र की भव्यता को उद्घाटित करने की प्रेरणा इन पक्तियो के लेखक के मन मे घनीभूत रूप से
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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