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________________ १४ | मुक्ति का अमर राही जम्बूकुमार है । प्रिये, भाग्य हम पर अत्यन्त कृपालु है और अव हमे कोई चिन्ता नही, धारिणी, अब कोई चिन्ता नही। प्रात काल ही श्रेष्ठिवर ने राज्य के प्रतिष्ठित और विख्यात स्वप्नफलदर्शक पडितो को अपने यहाँ निमन्त्रित किया। अतिथिसम्मान के लिए प्रसिद्ध ऋपभदत्त ने इन विद्वज्जनो का हृदय से स्वागत-सत्कार किया और श्रेष्ठ आसनो पर विराजित किया । पडितो की इस सभा मे धारिणीदेवी और ऋपभदत्त विनयपूर्वक खडे रहे और धारिणीदेवी द्वारा गतरात्रि मे देखे गये स्वप्नो का , ममग्न वृत्तान्त निवेदन कर उसके प्रभाव और भावी परिणाम जानने की जिज्ञासा प्रकट की। स्वप्नो का वृत्तान्त सुनकर पडितो मे परस्पर विचार-विमर्श होने लगा । अविलम्ब ही वे स्वप्नफल दर्शक एकमत हो गये और निष्कर्पत यह घोपित किया कि महाभाग | धारिणीदेवी ने जो स्वप्न देखे है वे अत्यन्त दिव्य और भव्य है । उसका सुनिश्चित परिणाम परम धर्मप्रिय, यशस्वी और लोक मगलकारी पुत्र की प्राप्ति के रूप में प्रकट होता है । वधाई हो श्रेष्ठिवर, आपको ऐसी पुण्यशाली सन्तति के जनक होने का गौरव प्राप्त हुआ है। सौभाग्यशालिनी धारिणीदेवी के गर्भ से तेजस्वी पुत्र यथासमय जन्म लेकर जगत् को कल्याण का मार्ग दिखायेगा और प्राणियो को उस मार्ग पर गतिशील होने के लिए प्रेरणा एव क्षमता प्रदान करेगा। ऐसे पुत्र के कारण आप ही नही मगध भी धन्य हो जायगा और समग्न जम्बूद्वीप उपकृत हो जायगा । विश्वस्त विद्वानो की प्रामाणिक भविष्यवाणी से श्रेष्ठिदम्पति ने विचित्र गरिमा का अनुभव किया। गद्गद् कण्ठ से
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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