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________________ दिगम्बर साहित्य में जम्बू | २२६ दिगम्बर परम्परा के विद्वान कविवर राजमल्ल ने विद्युच्चर के साथ दीक्षित हुए प्रभव आदि ५०० चोरो का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वे सभी राजकुमार थे और राक्षसादि द्वारा उपस्थित किये गये घोरातिघोर परीषहो को सहते हुए द्वादश अनुप्रेक्षाओ का चिन्तन करते हुए विद्युच्चर सर्वार्थसिद्ध मे और प्रभव आदि ५०० मुनि सुरलोक मे देवरूप से उत्पन्न हुए। श्वेताम्बर परम्परा मे आर्य प्रभव का बहुत ऊँचा स्थान है । प्रभव को जम्बूस्वामी का उत्तराधिकारी व श्रमण भगवान महावीर का तृतीय पट्टधर माना गया है जबकि दिगम्बर परम्परा मे जम्बूस्वामी का उत्तराधिकारी विद्युच्चर या प्रभव को न मानकर आर्य विष्णु को माना है।' दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थो मे जम्बूकुमार द्वारा महाराज श्रेणिक की हस्तिशाला मे से बन्ध तोडकर भागे हुए मदोन्मत्त तयोः सूनुरभून्नाम्ना विद्वान विद्युच्चर नृपः । शिक्षिता सकला विद्या वर्द्धमानकुमारत. ॥३०॥ जम्बू० च० सर्ग ५] १ शताना पञ्च सख्याका प्रभवादि मुनीश्वरा। अते सलेखना कृत्वा दिव जग्मुर्यथायथम् ॥१३॥ [जम्बू० च० सर्ग १३ कवि राजमल्ल] २ सिरिगोदमेणदिण्ण सुहम्मणाहस्स तेण जबुस्स । विण्हू णदिमित्तो तत्तो य पराजिदो तत्तो ।।४३।। [अंगपण्णत्ती
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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