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________________ जैनागमों मे आर्य जम्बू साधु धर्म स्वीकार करने के पश्चात् आये 'जम्बू अपने गुरुदेव आर्य सुधर्मा की सेवा मे रहकर शास्त्राध्ययन करने लगे जिस तरह गौतम गणधर ने प्रभु महावीर से प्रश्नादि किये उसी तरह आर्य जम्बू भी सुधर्मास्वामी से समाधान प्राप्त करते हैं । आर्य सुधर्मा भी अपने सुयोग्य शिष्य जम्बू की सभी शकाओ का समाधान करते है | गुरु द्वारा अपने शिष्य को आगमो का ज्ञान देने की यह परम्परा अविच्छिन्न रूप से आगे से आगे पश्चात्वर्ती काल मे भी चलती रही | जैनागमो को आज तक यथावत् रूप मे बनाये रखने का सारा श्रेय आगम ज्ञान के आदान प्रदान की इस परम्परा को ही है । जैनागमो की उपलब्धि मे गणधर गौतम की तरह आर्य जम्बू स्वामी को भी महत्त्वपूर्ण देन है, जिसे कभी भुलाया नही जा सकता । आज उपलब्ध आगमो का जो स्वरूप है वह उस समय की मूल परम्परा को समझने का आधार है । यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर की वाणी को अर्थ रूप से सुनकर आर्य सुधर्मा ने जिस प्रकार शब्द रूप से ग्रथित किया और जिस रूप मे जम्बूस्वामी ने पृच्छाकर आगम ज्ञान को प्राप्त किया उसी अपरिवर्तित स्वरूप मे आज वह ज्ञान भी विद्यमान है ।
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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