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________________ २ : पूर्वभव एव देहधारण ब्रह्मलोक मे एक सुविख्यात देव थे, जिनका नाम थाविद्युन्माली। विद्युन्माली देव की चार पत्नियाँ थी। ये चारो दीवयाँ अत्यन्त पति-परायणा थी। वे निरन्तर अपने पतिदेव की ही सेवा मे व्यस्त रहती थी और विद्यन्माली देव भी अपनी सभी पत्नियो से असीम प्रेम करते थे। सूकोमल व्यवहार उनके आचरण की विशेषता थी। परम सुखी जीवन व्यतीत करते हुए सुदीर्घ काल ब्रह्मलोक मे हो गया। अन्तत: इनके ब्रह्मलोक-वास की अवधि की समाप्ति भी समीप आ गयी थी। मगध राज्य की राजगह नगरी के वैभवशाली और धर्म परायण श्रेष्ठि ऋषभदत्त और उसकी धर्मपत्नी धारिणीदेवी का तो अब जैसे जीवन स्वरूप ही बदल गया था । इष्ट-प्राप्ति की बलवती आशा ने उनके समस्त कष्टो का जैसे हरण ही कर लिया था। अब धारिणीदेवी को अपने वैभव और सम्पत्ति मे असारता का अनुभव नही होता था। अपने सुसज्जित भवन मे अव उसका जो खूब लगने लगा था। उसने रुचिपूर्वक अपने निजी कक्षो की साज-सज्जा को अधिक अभिवर्धित कराया। __ माता द्वारा स्वप्न-दर्शन धारिणीदेवी का शयनकक्ष तो विशेष रूप से सँवर गया था। स्वर्णखचित भित्तियो पर ललाम पच्चीकारी का सौन्दर्य, - - -
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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