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________________ उपसंहार २०६ पांच सौ सदस्य भी थे । ये सब विरक्ति का भाव तो पहले ही धारण कर चुके थे। अव दीक्षा ग्रहण करने के पक्ष मे ये अपने-अपने अभिभावको की अनुमति लेकर आये थे । सूर्य के प्रकाश के साथसाथ समस्त राजगृह मे यह आश्चर्यजनक समाचार भी सर्वत्र व्याप्त हो गया कि कल जिस जम्वूकुमार का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ था आज वह गृहत्याग कर साधक जीवन प्रारम्भ कर रहा है। यही नही उसके ज्ञानपूर्ण वचनो से प्रभावित होकर उसके माता-पिता श्रेष्ठि ऋषभदत्त और धारिणी देवी, उसकी आठो नव-विवाहिता पलियाँ और पत्नियों के माता-पिता भी जम्बूकुमार के साथ ही दीक्षित हो रहे हैं। यह घटना भी छिपी नही रही कि गत रात्रि तस्कर प्रभव अपने दल सहित श्रेष्ठि ऋषभदत्त के यहाँ चोरी करने के लिए गया था । चोरी तो वह नही कर पाया, उलटा जम्वूकुमार की वाणी से प्रभव और उसके पाँच सौ माथियो का हृदय परिवर्तन हो गया। अब वे सभी आज ही जम्बूकुमार के साथ दीक्षा ग्रहण कर रहे है । जो भी इन समाचारो को सुनता अवाक् सा रह जाता था। सव के मन जम्बूकुमार के असाधारण व्यक्तित्व की प्रशसा के भाव से भर उठे । उनको यह सब एक चमत्कार सा प्रतीत हो रहा था। इस प्रात. सारे नगर मे चर्चा का विषय ही बस यही एक था। सब नागरिकजन गहन विस्मय मे निमग्न हो रहे थे। यह समाचार मगधनरेश कूणिक के पास भी पहुँचा । वह भी जम्बूकुमार के इस अद्भुत प्रभाव से चमत्कृत हो गया। उसे जब यह ज्ञात हुआ कि जम्बूकुमार का अभिनिष्क्रमण महोत्सव आज
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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