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________________ २] मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार उन्होने अपने प्रभाव मे हजारो-लाखो श्रद्धालु जनो को आत्मोत्थान और कल्याण के योग्य बना दिया था। राजगृह नगर वैभवाधिक्य के लिए विख्यात था। सम्पन्न परिवारो के कारण ही इस नगर में विशेप शान्तिपूर्णता थी। इसी नगर मे एक विख्यात श्रेप्ठि ऋषभदत्त भी निवास करता था । उसकी धर्मपत्नी का नाम था-धारिणीदेवी । अतुल सम्पत्ति, सुख, वैभव, व्यापक व्यवसाय, यश आदि का स्वामी ऋषभदत्त अत्यन्त सुखी जीवन यापन कर रहा था । धारिणीदेवी भी अपने स्वामी के सदाचरण, धर्मप्रियता आदि गुणो के कारण अपने आप को भाग्यशालिनी अनुभव किया करती थी। इनके लिए वैसे सर्वत्र सुख-ही-सुख था, किन्तु ससार मे ऐसा कौन है जिसके जीवन में किसी न किसी प्रकार का दुख नहीं रहा हो। इस दम्पति के मानस में भी जहाँ अपार सुख की राशि थी, उसी के पर्तों के बीच कही एक कसक, एक टीस भी छिपी हुई थी। इस कसक से धारिणीदेवी अपेक्षाकृत अधिक आहत रहा करती थी। जहाँ इनका वैभव असीम था, वही इनका परिवार इन दो प्राणियो तक ही सीमित रह गया था। भाँति-भाँति की साज-सज्जाओ से विभूषित उनका सुन्दर प्रासाद कभी वाल किलकारियो से गुजित नहीं हो सका था। भाँति-भांति के पुष्पो से सुशोभित उनका उद्यान नन्हे-नन्हें चरणो का स्पर्श नही कर पाया था। इनके शयन कक्ष की छत की कडियो मे झाड-फानूस तो लटकते रहे, किन्तु कोई पलना उनमे झूल नही सका था। कोकिलकठी धारिणीदेवी के होठो पर कभी लोरियो के स्वर नही थिरके और न ही उसके कानो
SR No.010644
Book TitleMukti ka Amar Rahi Jambukumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni, Lakshman Bhatnagar
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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