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[कवि जान कृत श्रीफतिहखांके पुत्र १ जलालखां, २ हैबतसाह, ३ महमसाह, ४असदखां, ५दरियासाह, ६ साहमनसूर, ७ सेख सलह, ८ बलों, ६ संग्रामसूर, १० हेतम ।
खां जलाल हेतम बलो, सलह साह मनसूर । दरिया हैबत असद महमद, जुद्ध सूर संपूर ॥३७५॥
अथ फतिहखांको बखान फतन भयो अतहीं प्रबल, नम्यो न काहू सीस । काहूको मानत नहीं, येक बिनां जगदीस ॥३७६॥ नीव दई षटकोटकी, येक द्योस कहि जांन । नगर फतिहपुर आपनौं, कर्यो फतन असथांन ॥३७७॥ नयो बसायो फतिहपुर, हौ सरवर उद्यान । नांव आपनै फतेहखां, कर्यो- बड़ो असथांन ।।३७८॥ पंदरहसै जु अठौतरै, बस्यो फतहपुर बास । सुद पांचै तिथ ही तबहिं, और चैतको मास ॥३७६।। संन सत्तावन पाठस, जगमै कर्यो प्रकास । माह सफर दिन बीसवै, बस्यो फतहपुर बास ॥३८०॥ कोट चिन्यो नीकै नखित, सुथिर कर्यो करतार ।
आस पासके भोमियां, आवहि करन जुहार ।।३८१॥ पल्हू सहेवा भादरा, पुनि भारंग अस्थांन ।
और बाइलै कोट ये, कीये फतन चहुवांन ॥३८२॥ पातसाहकी चोखसौ, रहि ना सके हिसार । कर्यो फतिहपुर फतिहखां, इतहि आइ तिह बार ॥३८३।। प्रथम रनाउमै रहे, जो लौं चिनियो कोट । पाछै ये फतिहपुर, लये साथ दल कोट ॥३८४॥ पातसाह वहलोल चित, उपजी रिनथंभ चाहि । मिल्यो न मोसौ आइक, हंदू कोधौं आहि ॥३८॥