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________________ प्रधान संपादकीय किंचित् प्रास्ताविक 'फूलनि मधि गुलाल, चुनियनि जैमी लाल । इनमें तैसो गोत चक्रवै चौहान को ॥ 95 ७ इसलिये अपने चरितनायक अलिफखानका, इस चौहान गोतमे उत्पन्न होना कविके मनमे बडे गौरवकी बात है और वह प्रारभहीमे वडे गर्वके साथ इसका उल्लेख करता हुआ कहता है कि 'अटिफखांनु दीवानको बहुत बडौ है गोत । चाहुवांनकी जोरको और न जगमें होत 11 66 33 चौहानकुलकी उत्पत्ति की जो कथा इस कविने दी है वह शायद अन्य किसी ग्रन्थ मे नही है और इस दृष्टिसे यह एक नूतन अन्वेषणीय वस्तु है । कवि पृथ्वीराज चौहान ( प्रथम के ? ) द्वारा काबूलसे दूब मगा कर, दिल्ली के मैदानोको हराभरा कर देनेका जो उल्लेख करता है (पृ. ६, पद्य ६५ ) वह भी एक ऐतिहासिकोके लिये गवेषणीय विचार है | afant वर्णनशैली स्वाभाविक और सरल है । न इसमे कोई शब्दाडबर है न अत्युक्तिका अतिरेक है । उक्तिपद्धति अच्छी ओजस्भरी हुई और रचना प्रवाहबद्ध एव रसप्रद है । भाषाविद्या ( फाइलोलॉजी) की दृष्टिसे यह ग्रन्थ और भी अधिक महत्त्वका है । इसमे डीगलकी वह कृत्रिम शब्दावलि बहुत ही कम दिखाई देती है जो बादकी शताब्दीमे बनी हुई चारणोकी रचनाओमे भरपूर दृष्टिगोचर होती है। इसकी गव्दावलि पर शौरसेनी अपभ्र शकी बहुत कुछ छाया दिखाई देती है और साथमे प्राचीन राजस्थानीका पुट भी अच्छे प्रमाणमे उपलब्ध होता है । हमारा अभिमत है कि किसी उत्साही और परिश्रमी विद्वान्‌को या विद्यार्थीको चाहिये कि किसी युनिवर्सिटीकी पीएच डी की डीग्रीके लिये इस कविकी रचनाओका भाषाविज्ञानको दृष्टिसे गंभीर अध्ययन कर, तुलनात्मक निबन्ध उपस्थित करनेका प्रयत्न करें। इस भाषाविद्या विचारका उल्लेख करते समय, प्रस्तुत प्रकरणमे जो एक कथन हमे प्राप्त हुआ है वह विद्वानोके लिये और भी विशेष विचारणीय है । बीकानेरकी अनूपसस्कृत लाइब्रेरीके, एक हस्तलिखित प्राचीन गुटकेमें, रूपावली नामक आख्यान लिखा हुआ है जिसका थोडा सा परिचय सपादकोने अपनी भूमिकाके पृ ११ पर दिय है । यह रूपावली आख्यान प्रस्तुत कवि जान ही की कृति है या अन्य किसीकी यह इस परिचय से ज्ञात नही हो सकता। इस आख्यानकी पहली चौपाई में कहा गया है कि फतहपुर नगर जहां बसा है उस देश या भूमिका नाम बागर* है और वहाके आसपास जो भाषा बोली जाती है वह भली प्रकार की सोरठ-मारू है जिसमें सुन्दर रूपसे भाव प्रकट किये जाते है । हमारे लिये * ग्रन्थकारने वर्तमानमें शेखावाटी कहलानेवाले प्रदेशका नाम - जिसमें फतहपुर और झूझनु आदि नगर बसे हुए हैं-वागढ लिखा है - यह भी भौगोलिक दृष्टिसे अन्वेषणीय है। राजस्थानका वह प्रदेश, जिसमें डूगरपुर, बासवाडा, प्रतापगढ आदि नगर बसे हुए हैं प्राचीन कालसे वा गढ नामसे प्रसिद्ध है। इसी तरह राजस्थानकी दक्षिणी सीमा पर आया हुआ कच्छ और उत्तर गुजरातके बीचमें जो छोटा रण कहलाता है उसके आसपास के प्रदेशका नाम भी वा गट है और जो प्राय कच्छचागढके नामसे प्रसिद्ध है । कवि जानके समकालीन साहित्यमें फतहपुर आटिका होना भी वागर या बाग प्रदेशमें बताया गया है। यों राजस्थानके सीमा प्रान्तों पर तीन वागढी प्रदेशों का उल्लेख मिल रहा है। इस वागढ शब्दका वास्तविक अर्थ क्या है यह भी एक विचारणीय वस्तु है । जेन ग्रन्थों में वागड विषयके बहुतसे उल्लेख प्राप्त होते हैं ।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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