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________________ क्यामखां रासा]] संभर लयो निकास जिहं, ताकी संम सर कौन । सब ही कोउ खातु है, चाहुवांनको लौन ॥५०॥ संभरकी लौनी धरा, तित उपजे कहि जांन । लौन हि लाज नं मारि है, हैं जित लौ चहुवांन ॥५१॥ ।। सवैया । देवनमे देवराज, गजनिमै गजराज, पंछी पंछराज, ग्रहनिमै तपु भानको । सरितामै ज्यों समंद, बोहिथ नौका निविंद, उडिनमें इंद, पत्रनिमे भोग पानको। गिरिनमै सुमेर, दरगाहनिमें अजमेर, खाननमे मांन, जैसौ कंचनकी खांनको । फूलनि मधि गुलाल, चूनियनि जैसौ लाल, राइनमै तैसो गोत, चक्रवै चौहानको ॥५२॥ ॥दोहा॥ कलप बिछ चहुवान है, जाकै अनगन साख । जो हौ जानौ जान कहि, सु तो सुनाउभाख ॥५३।। ॥ सवैया ॥ क्यामखान देवरे, सीसोदीये भदोरिये, चितोरीये बाघोर मल, खीची निरवान जू । चाहिल मोहिल माहो, दूगर वालेसे जौर, सोनगरै गिल खोर, मांदलेचे मांन जू । गुहिलौत उमंट, साचौरे गोधे राकसिये, - हाले झाले दाहिमै कहि [कवि] जान जू । गूंदल बालोंत हाडे छोकर घंधेरे खैल जू जेती सव साखनिको मूल चहुवांन जू, ॥५४।। ॥ दोहा ॥ बारोरिये धुकारने, चीवे गोवल वाल । हुल तावर डल होर पुनि, चाहुवांनकी डाल ॥५।। पड सूर आसोफ पुनि, पीपारे कहि जांन । गोतम दागी अरु मरिल, सवन मूल चहुवांन ॥५६॥ चाहुवानकै वंसमै, भये • छत्रपति राइ । तिनकी कथान जै कथी, नांब कह्यौ समझाइ ॥५७।।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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