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________________ किंचित् प्रास्ताविक 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' में प्रकागित करने के लिये, बीकानेरके जानभंटारोमैसे कुछ ग्रन्थ प्राप्त करनेकी दृष्टिसे सन् १९५२ में बीकानेर जाना हुआ, उस समय, प्रसिद्ध राजस्थानी साहित्यसेवी श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटाके पास प्रस्तुत 'क्यामखां रासा' की प्रतिलिपि देखनमें आई। ग्रन्यकी उपयोगिता एव विपनाका खयाल करके हमने इसे, इस ग्रन्थमालामें प्रकट करने का निश्चय किया और तदनुमार मुद्रित होकर अब यह, विद्वानोके हस्त सपुट में उपस्थित हो रहा है। अन्य और ग्रन्यकारके विषय में प्यालभ्य सब बाते सपादक-प्रयीने विस्तृत भूमिका और ऐतिहासिक टिप्पण जादि द्वारा उपलब्ध कर दी है जिससे पाठकोंको ग्रन्यका हार्द समझने में ययेप्ट महायता मिल सकेगी। मूल ग्रन्यकी केवल प्रतिलिपि ही हमें मिली थी जो श्री नाहटाजीने कुछ समय पहले, उन्हें प्राप्त हस्तलिखित प्राचीन प्रतिके उपरमे करवा रखी थी। प्राचीन ग्रन्थोके सपादनकी हमारी शैली यह रहती है कि किसी कृतिका सपादन कार्य जब हाथमे लिया जाता है तब उसकी अन्यान्य दो चार प्रतिया प्राप्त करनेका प्रयत्न किया जाता है। यदि कहीसे उसकी ऐमो प्रनिया मिल जाती है तो उनका परम्पर मिलान करके, भापाकी, छन्दकी, अर्थकी और वस्तुसगति आदिको दृष्टिमे, विशिष्ट स्पसे पर्यवेक्षण करके मूल पाठकी गचना तैयार की जाती है और भिन्न-भिन्न प्रतियोमें जो शाब्दिक पाठभेद प्राप्त होते है उन्हे मूलके नीचे पाटिप्पणीके रूपमें दिया जाता है। प्राचीन ग्रन्थोके सपादनकी यह पद्धति विद्वन्मान्य और सर्वविश्रुत है। परन्तु जव किसी ग्रन्यका कोई अन्य प्रत्यन्तर गक्य प्रपल करने पर भी, कहीसे नही प्राप्त होता है, तव फिर वह कृति केवल उसी प्राप्त प्रतिके आधार पर यथामति सशोधित-सपादित कर प्रकट की जाती है। प्रस्तुत 'क्यामखा रासा' भी इसी तरह, केवल जो प्रतिलिपि हमे प्राप्त हुई उसीके आधार पर, सशोधित कर प्रकाशित किया जा रहा है। जिस मूल प्रतिपरसे, श्री नाहटाजीने अपनी प्रतिलिपि करवाई थी वह मूल प्रति भी हमारे देखनेमे नही आई। इससे हमको यह ठीक विश्वास नही है कि जो वाचना प्रस्तुत मुद्रण मे दी गई है वह कहा तक ठीक है। प्रेसमेंसे आनेवाले प्रुफोका सशोधन करते समय हमें इस रचनामे भाषा और शब्द मयोजनाकी दृष्टिसे अनेक स्थान चिन्तित मालूम दिये है जिनका निराकरण मूल प्रति और एकाध प्रत्यन्तरके देखे विना नही किया जा सकता। लेकिन उसके लिये कोई अन्य उपाय न होनेसे इसको ययाप्राप्त प्रतिलिपिके अनुसार ही मुद्रित करना हमे आवश्यक हुआ है। राजस्थानके साहित्यसेवी विद्वानोसे हमारा अनुरोध है कि वे इस रचनाके कुछ प्रत्यन्तर- जो अवश्य कही-न-कही होने चाहिये - खोज निकाले, जिससे भविष्यमे इसकी एक अच्छी विशुद्ध वाचना तैयार करने-करानेका प्रयत्ल कोई उत्साही मनीपी कर सके।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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