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________________ २८ क्यामखां रासा-भूमिका धरने अलफखांको जागीर न छोदनेके लिये संदेश भेजा और दौलतखाने लिखा कि यदि सीधे तौरसे नहीं निकलोगे, तो मैं लड कर भगा दूंगा। तब उसने लिखा कि मेरे पैर पाताल में हैं, ऐसा कौन योद्धा है जो मुझे निकाल सके । दौलतखाने तुरन्त ससैन्य चढ़ाई कर दी अलफखां भाग गया और खीरीरमें न रह सकने पर खोहमें मारा-मारा फिरने लगा। दौलतखाने विजय-दुन्दभी बनाते हुए उदयपुरमें प्रवेश किया। उसकी धाक चारों श्रोर जम गई; खंडेला,और रैवासेमें भी खलबली मच गई। श्रलफखांको बादशाहने दक्षिणसे बुला कर तीसरी वार मेवातकी फौजदारी दे कर भेजा। दीवानने दौलतखांको साथ ले कर वांकी, खेरी, चोरटी, मैवास श्रादिको तहस-नहस कर डाला। बहुतसे भोमिए लड मरे । कितनोंने युद्ध बन्द करके अपनी पुत्रियां दी । मेवात फतह करनेके बाद अलफखांको यादशाहने तुरन्त दक्षिण भेज दिया। कांगड़ा पर चढ़ाई करनेके लिए बादशाहने दीवान अलफखांको दक्षिणसे बुलाया और राजा विक्रमाजीतको साथ देकर विदा किया ।राजा सूरजमल नूरपुरमे था, शाही सेनाके साथ युद्धमे भाग गया। राजा विक्रमाजीत और दीवान अलफखाने नूरपुर पर कब्जा कर लिया और वहीं डेरा जमा दिया । दीवान अलफखां नूरपुरमें रहा और राजा विक्रमाजीतने नगरकोट पर चढ़ाई करनेके लिए कूच किया। जब सूरजमलने सुना कि राजा नगरकोट पर गया तो उसने नूरपुर पर सदलबल चढ़ाई कर उसे वापिस लेने की ठानी, परन्तु दीवानजोसे लड़ने में असमर्थ हो कर कुछ भी घात न कर सका। राजा विक्रमाजीत कांगड़े गया। वहां बैरीसे बात कर असफल-सा होकर लौटा और दीवानजीको काहलूर पर चढ़ाई करनेको कहा । तत्काल अलफखाने कृच कर ग्वालियर में डेरा किया तो कहलूरिया दीवानजीके आनेकी बात सुनते ही पेशकश सहित हाजिर हुआ। अलफखांने उसे विक्रमाजीत राजाके पास भेज दिया। राजा जब बढ़-चढ़ कर बात करने लगा तो वादशाहने लिखा कि कांगड़ा जैसे हो अधिकारमें लायो। शाही सेनाने नगरकोटके चारों तरफ घेरा डाल दिया और गढ़ तोड कर अधिकार कर लिया। दूसरोंके वहां रहना अस्वीकार करने पर राजा विक्रमाजीत और दीवान अलफखांने सलाह करके दीवानजीको ही वहां रक्खा । बादशाहने अलफखांका मनसव बढ़ा कर सस्कृत किया। _ वादशाह जहांगीर स्वयं कांगड़ा देखनेके लिए आया। दीवान अलफखांसे मिल कर वह अति प्रसन्न हुआ और उसे सम्मानित कर काश्मीरकी ओर चला गया । जव ठटा वालोंने मिर उठाया तो बादशाहने अलफखांको बुला कर ठटा भेजा । उसने तुरंत वहां जा कर ठटा सर कर लिया। इधर दोवानजीके चले जानेसे कांगड़ेके सब पहाडी एक हो कर मुगल सल्तनतके विरुद्ध हो गए। बादशाहने सादिकखांको ससैन्य भेजा, परन्तु उसके असफल होने पर शाही फरमान द्वारा दीवान अलफखा कांगड़े आया। अलफखांके आते ही सब पहाड़ी उसे जुहार करने पाए। सादिकखां दीवानके प्रभावसे बडा चमत्कृत हुआ ।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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