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________________ २५ रासाका ऐतिहासिक कथा-सार ताजखां अलवरसे सदलवल चढा । उसने सारां और खरकरीको नष्ट किया । लखानगढ़को लूटा । मलिक ताजके यहां लुटमार कर रेवाड़ीका थाना नष्ट कर दिया । दीवान ताजखांके बडे पुत्र मुहम्मदखांके तीन पत्र थे- अलफखां, इब्राहीमखां और सरमस्तखां । मुहम्मदखाने क्योर और वैराटको विजय किया। मांढनके पुत्र पावत राठौर कुंभकरनको उसने रणक्षेत्रसे भगाया। ___ताजखांकी विद्यमानतामें ही मुहम्मदखांकी मृत्यु हो गई । पुत्र वियोगसे पिताको अत्यंत दुःख हुआ परंतु रुदन करनेसे आंसूके सिवा क्या हाथ था सकता था, अतः अपने पौत्र अलफखांके मस्तक पर हाथ रक्खा और उसे शाही दरवारमें ले गया। वादशाह जलालुद्दीनसे (अकबरसे) ताजखांने निवेदन किया कि मेरे घर में यह बड़ा है, इसे आप सम्मान दें। बादशाहने अलफखांको वढा प्यार किया । जव तक ताजखां जीवित रहे, अलफखांको क्षण भरके लिए भी अपनेसे अलग नहीं किया। उसके मरने पर अलफखां उत्तराधिकारी हुआ। बादशाहने उसे टीका दे कर फतहपुरका स्वामी बनाया और उसे हाथी, घोडा सिरोपाव दिए । अलफखांने शाही फरमान ले कर फतहपर भेजा; कछवाहे गोपालके पुत्र स्यामदासके न मानने पर सिकदार शेरखांने उसे निकाल दिया। दीवान अलफखांको फतहपुर मिला और वह नवाब कहलाने लगा। नवाब अलफखांके पांच पत्र थे-दौलतखां,' न्यामतखां, सरीफखां, जरीफ और फकीरखां ।। झमणके स्वामी वहादुरखांके मरने पर उसका बड़ा पुत्र समसखां उत्तराधिकारी हुआ, किंतु दूसरे भाई उसे नहीं मानते थे और उसे सतत दुःख दिया करते थे । अलफखां उसे बादशाहके पास ले गया और वादशाहके द्वारा मनसबका सम्मान दिलाया। यही रीति चलती है कि फतेहपुर वाले जिसे बडा करें वही झूझणूमें बडा होता है। बादशाह अकवरने पहाडमें युद्ध करनेके लिए जगतसिंह और दीवान अलफखांको सेना सहित भेजा। धमेहरीमें जा कर वन लोगोंको पराजित कर उनके गांवोंको नष्ट किया। राजा तिलोकचन्द भयभीत हो कर शरणमें पा गया। दीवानजीने उसे वादशाहके कदमोंमे हाजिर किया। सलीमने जब राणा पर चढ़ाई की तो उसने बादशाह अकबरसे कह कर अलफखांको भी साथ ले लिया। मेवाडमें था कर शाहजादेने विशाल सेनाको विभाजित कर सादड़ीका थाना अलफखांके जिम्मे लगाया । उसने राणा अमरसिहके थाने पर आक्रमण कर दलको मार भगाया और लूटका बहुत-सा माल हाथमें किया । राणा बहुत रुष्ट हुश्रा, परन्तु वह भी सादड़ी श्रानेमें असमर्थ रहा। उंठालेमें समसखां था । उसने भी राणाको खूब छकाया। जब शाहजादेने सुना तो उसने अलफखां और समसखां दोनों चौहान वीरोंकी बडी प्रशंसा की। १. राज्यकाल सं० १६२७ पर यह चितनीय है। पेड़ीके अनुसार इनका जन्म १६२१ मे हुया था।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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