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________________ २३ रोसाका ऐतिहासिक कथा- सार हुआ और साहबखांका पुत्र मुहब्बतखां उसे प्रतिदिन सलाम करता था। एक बार परस्पर चित्तकालुष्य हो जानेसे मुहब्बतखां नौहा छोड कर दौलतखांके पास फतहपुर चला गया। उसने दौलतखांके पौत्र फदनखांको पुत्री दी और उसकी सेवा करने लगा। मुहब्बतखांके निवेदन करने पर दौलतखांने कहा-नौहा तुम्हारा है, तुम वहां जाकर रहो । तुम्हें कौन निकालने वाला है ? यदि भीखनखां कुछ गड़बड करे तो मुझे खबर देना । मुहब्बतखां नौहा जा कर रहने लगा। भीखनखां तत्काल सेना ले कर चढ़ पाया । मुहब्बतखांके फतहपुर कहलाने पर दौलतखांका बड़ा पुत्र नाहरखां भी सहायतार्थ श्रा पहुँचा । श्राभूसरके ताल पर घमासान युद्ध होने लगा ! नाहरखांको देखते ही भीखनखां युद्ध क्षेत्र छोड़ कर भाग गया। नाहरखां जीत कर घर आया । पिताने प्यारसे गले लगा लिया । दौलतखांके मरने पर उसका पुत्र नाहरखां फतहपुरकी राजगद्दी पर बैठा। दीवान नाहरखांके तीन पुत्र थे-फदनखां, यहादुरखां, और दिलावरखां । नाहरखां बड़ा चोर और विलास प्रिय भी था । घरमें धन बहुत था, उसने बहुत सी पातरियां रख ली और नाचगानका अखाड़ा रात-दिन जमा रहता था। आस-पासके भोमिए जमीदार भय खाते थे। बीकानेर के राव लूणकरनके मरने पर पूर्व निश्चयानुसार वजीरोंने प्रेम संबंध स्थापित करनेके लिए राजकन्या दी। दिल्लीपति सिकंदरके मरने पर इब्राहीम बादशाह हुआ । उसे मार कर वाबर और फिर उसका पुत्र हुमायूं बादशाह हुश्रा । नाहरखांके समय शेरशाह दिल्लीका बादशाह था । वह नाहरखांको यहुत मानता था और उसे मामा कह कर पुकारता था। उसने हुक्म दिया कि फतहपुरकी पेशकश घर बैठे मज़ेसे खायो। नाहरखांने सं० १५९३ भाद्र सुदी ८ सोमवारके दिन फतहपुरमें एक सुंदर अद्वितीय महल बनवाया। एक बार चित्तोड़के राणाने नागौरके खान पर चढ़ाईकी । पूर्वकी प्रीतिके कारण नागौरीके आमंत्रणसे नाहरखां सहायतार्थ चला । राठौड़ व कछवाहे उसे दिल्लीपतिसे भी अधिक मानते थे राव गांगा, जैतसी, सूजा और पृथ्वीराज श्रादि सब ससैन्य आ मिले । जय नाहरखांने सुना कि नागौरसे १२ कोस पर राणा ठहरा हुआ है और खान नागौरसे निकल कर लडनेको नहीं जाता है, तो वह नागौर में न जा कर तीन कोस और आगे गया । नागौरीखांके बुलाने पर नाहरखांने कहा, "राणा निकट ठहरा हुआ है । तुम कोटकी श्रीटमें क्यों छिपे हो ? मैं अब आगे निकल पाया, लौट नहीं सकता। तुम्हीं आ कर मिलो।" नागौरीखां भी नाहरखांकी धाक सुन कर राणा उलटे पैर चला । नाहरखां भी उसी मार्गसे सबके साथ पीछे-पीछे गया। राणाके पहाड़ोंमें प्रवेश करने पर १. राज्यकाल सं० १५४६ से १५७० २. राज्यकाल सं० १५७० से १६१२
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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