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________________ रासाका ऐतिहासिक कथा - सार ऊपर आक्रमण करनेके लिये अगणित सैन्य एकत्र किया और बीड़ा फेर। । मुगल चौपानांने बीड़ा उठाया और जगीर कटराथलके पास दलबल-साहित श्रा पहुँचा । जलालखां भी तैयार हो कर युद्धमें उतरा । उसने शत्रुके छक्के छुड़ा दिए । चौपानखांको पकड़ कर उसके नितंब पर दाग लगाया और उसके हाथी, घोड़े, इत्यादि लूट कर छोड दिया। फिर जलालखांने छोपौरी पर चढ़ाई की और विजय प्राप्त कर अांबेरको जा घेरा । वहाँके भौमिए बड़ी वीरतासे लडे । मिल कर उन्होंने जलालखांके हाथीको श्रा घेरा । साथी लोग सब लूटमें लगे थे, तो भी अकेले दीवान जलालखाने बाणोंसे शत्रुदलको भगा दिया। चौहान समसखांके मर जाने पर उसका पुत्र और बादशाह बहलोल लोदीका जमाई, फतहखां उत्तराधिकारी हुआ। अपने अभिमानमें मस्त हो कर अपने भाई मुबारकशाह और विमाताको बटवारा न दे कर झूमणुकी समस्त श्राय वह स्वयं खाने लगा। मुबारकसाहने अपने नाना राव जोधाके पास जा कर शिकायत की। राव जोधाने कहा कि तुम्हारे मामा बीका और बीदा तुम्हारे निकट हैं, उनसे कहो । मुवारकशाह मामाके पास श्राया, किंतु वहांसे निराश हो कर लौटा, और फतहपुरमें जलालखांके पास थाया । मुबारकशाहको उसने आश्वासन देते हुए कहा कि मुझे बादशाहका कोई खौफ नहीं, मेरे पिता भी उससे नहीं ढरे तो डर कर क्यों कलंक लूं ? जलालखांने ससैन्य झूझा पर चढ़ाई की । फतहखांकी सेना भाग गई, तब उसने मुबारकशाहको झूमणूका राज्य दिया। फतहखां मर गया । महमदखांको राज्य न मिला । मुवारकशाह ही राज्यका मालिक रहा। ____ जलालखां लोहागर जा कर रहने लगा । वहां पहाडकी भोट ग्रहण कर नागौरी खानको तंग किया करता था । इधर फतहपुरको सूना सुन कर उसके लिए बीदाका मन ललचाया और वह सदलबल नरहरमें दिलावरखांसे जा मिला। दस हजार रुपया और एक बेटी देनेको बात कर पठानको भी ससैन्य फतहपुर ले आया । लोहागरमें जलालखांको खबर मिली तो उसने तुरंत अपने पुत्र दौलतखांको भेजा। उसने फतहपुरके गढमे प्रवेश कर अपनी जय-पताका फहराई। बीदा और दिलावरखां व्याकुल हो कर लौट गए। जलालखांके मरने पर उसका पुत्र दौलतखां उत्तराधिकारी हुा । उसके तीन पुत्र थेनाहरखां, होवनखां, और वाजिदखां । दीवान दौलतखां चौहान महान् तेजस्वी और जबरदस्त • वीर था, उसकी ऐसी धाक जमी हुई थी कि शत्रु लोग भयसे मुँह छिपाते फिरते थे। वह अनीतिके लाख-करोड़को भी कौड़ीके समान गिनता था। किसीको अपनी अंगुल-मात्र भूमि भी नहीं देता और न किसीकी लेता था। सात सुलतान भी यदि उसके प्रतिस्पर्धी हो तो भी वह संग्राममें पीठ नहीं दिखाता था। उसमें वचनसिद्धिकी भी विशेषता थी। राव बीका ढोसीसे अफसल लौटा था, अतः लूणकरनने सदलबल तैयार हो कर पाटौधैमें डेरा किया, और पत्र देकर प्रधानको दौलतखांके पास भेजा। पत्रमें लिखा था कि-दौलतखां, यदि
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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