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________________ ' कवि जान कृत किंतु जैसा ऊपर निर्देश किया जा चुका है, कुछ समयके लिये तो हिसार अवश्य क्यामखानियोके हाथसे निकल गया था, और इसी कारण सम्भवतः ताजखां और महमूदखांको कुछ समय तक नागोरीखां (फिरोजा) के यहाँ आश्रय ग्रहण करना पड़ा। पृष्ठ २९, पद्यांक ३४० से. राणा मोकलसे नागोरके खां और क्यामखानी भाइयोंका युद्ध...... रासाने मेवाड़के स्वामी राणा मोकल और नागोरीखांका अच्छा वर्णन दिया है । राणाकी विजय इतिहास द्वारा समर्थित है । क्यामखानियोंकी राणा पर विजय संभवतः कल्पित है। सम्वत् १४८५ (सन् १४२९) के शृङ्गी ऋषिके शिलालेखमें इस युद्धका प्रथम उल्लेख है। क्यामखानी भाई सन् १४१९ में किवामखां (क्यामखां) की मृत्युके बाद ही हिसार छोड कर नागोर पहुँचे होंगे। वास्तवमें उन्होंने यदि इस युद्ध में भाग लिया हो तो हम युद्धको सन् १४१९ और १४२९ के बीचमें रख सकते हैं। शिलालेखमें राणा मोकलके दो प्रतिपक्षियोंका वर्णन है-एक फिरोजखांका और दूसरा महमद का । फिरोजखां नागोरका स्वामी था। क्या यह संभव नहीं कि महम्मद उसका मित्र एवं अनुगामी क्यामखानी महमूद हो ? पृष्ठ २९, पद्याङ्क ३४१. पहलै तौ गोली चली, और छटी हथनाल ।...... ___गोलियोंका भारतमें प्रयोग शायद मुगलकालसे आरंभ हुआ। यह उससे पूर्वको बात है। पृष्ठ ३१, पद्यांक ३६५. रासाके अनुसार नागोरीखांसे सर्वथा हारने पर ताजखां वापिस हिसार पहुँच गया। यह बात सर्वथा असंभव नहीं है। क्योंकि सय्यद वंशके परतर सुल्तान बहुत निर्बल थे। किन्तु यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण है कि केवल नागोरका खां ही उससे न डरता था; निरवाण, चौहान, तंवर, कच्चाहे एवं अनेक अन्य जमींदार भी उसे कर देते थे और उसने खेतड़ी, खरकरा, रेवासा, वौहाना, पाटन, गवरगढ़ आदिको लूट लिया था। पृष्ठ ३१, पद्यांक ३७४. ताजखांन जब चलि गये, फतिहखानुं सिरमौर । बैठौ कोट हिसारमैं, भलै पिताकी और । . फतहखांके राज्यका हिसारमे आरम्भ होना भी संभव है। किन्तु यह अवश्य ध्यानमें रहे कि फतहपुरकी स्थापनासे पूर्व बहलोल लोदीने इस पर अधिकार कर लिया था। सय्यद सुस्तान अलाउद्दीनके समय लोदी सरहिन्द, स...सन्नाम, हिसार और पानीपतके स्वामी थे। (वारीखे खांजहां लोदी, खंड ५)। पृष्ठ ३२, पद्यांक ३७९-८०. सम्बत् १५०८ में फतहपुरकी स्थापना हुई। उस समय चैत्र शुक्लकी पंचमी थी। हिनी सम्वत्की यही तिथि सन् ८५७ तारीख २० सफ़रके रूपमें दी हुई है। इन दो तिथियोंमसे हमें एकको अशुद्ध मानना होगा । सन् सत्तावन आठसेके स्थान पर सन् पचावन आठसे होने पर यह अन्तर दूर हो सकता है। इसी सालमें वहलोल भी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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