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________________ लिफखांकी पैंडी ] करै कपरदी रत डिहॅू । सुमिरण जगदीस । । अति हरिखिदा जांन कहि । दे सुभट असीस ॥ ८२ ॥ मुडहदी माला करी । पुजे सिव काज | फुल्या आज || विराज । गलै लग्गि सुभटां मिल्या । मन सूरांदे लोइण खुले । प्रति । गिरभं दौड़े अंख पर । ज्यौ दल रहे बै बाज || ८३ || बोलें । डोलें ॥ पड़े सूरिवां खेत बिच । घाव भकभक पास न आवें गिदड़े । वै भगदे ........वेख मुंछां हलदी | जद पवन कोलें । गिरभ अखंदा त्योर तकि । मुंह नांही खोलै ॥ ८४ ॥ धूल पई उड़ नैण विच । डिठ त्योर छिपाये । निडर होइ द्रिग सूरदे । तद गिरीं खाये ॥ अंख बाझ तन सुभटदे । दिट्ठां रहसाये । तद सियाल डिठ बंधकै । खांणेनौ आये ॥ ८५ ॥ अत किलकंदी चौंपनाल । जुग्गिन उठि धाई । घांण पया जित सुभटदा । तित प्यासी आई | खप्पर भर छांणहि रगत । दिल विच हरखाई । रैणी जांण कसूंमुदी । कसूंमुदी । रंगरेज चढ़ाई ||८६|| कवारी ॥८७॥ हाथी कटि धरती पये । घाइल होइ जिद निकाल्या सूरखें । सांगोदी जूगिणं गज उतरें चढें । जेही टिब्वै चड़ि चडि कुद्ददी । ज्यों कन्या रिण विच वस जुगणी | मिलि करी धमाल । पिचकारी गज सुंड कर । छिड़कै रत वाल || लाल हुये रंग हभांदे । रग रगत गुलाल । मुंड कुड विच न्हाइ कर । वै हुई पीवे प्याले खोपरी । मिलि जुगिणी मद लोहूथै हढ़िहैं । हंभ मतवाली ॥ निहाल ||८|| बाली । भारी । मारी ॥ उणिहारी ।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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