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________________ ८० [ कवि जॉन कृत जुद्ध को समुद्र है सहादत के नग भर्यो बूडकले पावे जो न डरै काल जलतें । महमद खांन अंग जीते नित जोरि जंग आरन अभंग बडौ साकौ कीयो चलतें । बड़े बड़े राजा राव रानां उमराव भूप औसी भांति मरिबेको मुये हाथ मलतें ॥ ९२९ ॥ बासोहद कीनी बस चबे दीनी पेसकस जस भयो जीत्यो है नगरकोट भौनकों । काहलूर जैतवा मंडई सुखेत मां बिकट पहार पैठे मारग न पौनको । भाजे भाजे फिरत पहारी हार येक भये कोरनिसौ लरै सौ साहस है कौनको । गए अमरापुर अलिफखां अमर भये संभरी नरेशने चढायो लौन लौंनकी ॥ ९३०॥ ॥ दोहा ॥ जो लौ जीये जगत मैं, अलिफ खांन सिरमौर | गढ़ मनसब लेते रहे, आज और कल और ॥ ३१ ॥ ॥ सवईया ॥ दोइ बार दछिन मे वाती तीन बार मली कछवाह तीन बार खेत ते खिसाये है । साधी है मेवार दोइ बार श्री ठटा हूं साध्यो मार २ कै भिवानी भोम भोमिया मिलाये है । कांगरौ पजायो करवर भखाये है । अलिफखांन बर चार बार जंगल लखी के मारि डंड खरे ईसरस भये सरसै गजे उमराव दलपति हूं भजाये हैं ||३२|| ॥ दोहा ॥ सोरहसै जु तियासिया, सन सहस पैतीस । अलिफ खानुं बैकुठ गये, रोजै अठ्ठाईस ||३३||
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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