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________________ स्यामखां रासा] ७७ FFER ॥ पेडी॥ आवै हाथी घूमते, घूमै मतवारे । जैसी साबनकी घटा, वै तैसे कारे । कै परबतसे देखिये, वै भारे भारे । ज्यों धन गरजै भादुवै, त्यों गरज चिघारै ॥६००॥ हाथी ठाड़े ही रहे, वे थर थर करि है। जैते पाव उचाइ है, आगे ना परि है। घाव लगे बहु अंगमे, तिनतें रत ढरि हैं। गिरवर तें कवि जान कहि, झरनासे झरि है ॥६०१॥ ॥ दोहा ॥ करी कहा पशु बापुरे, सहैं जु डिष्ट करूर । सूर देखि गज यों चले, ज्यों निस देखे सूर ॥९०२॥ ।। सवइया ।। जुध मच्यौ विरच्यौ चहुवांन सजोव गयौ उड़ि सागनि लागै । राते भये रत सौ सत सौ असौ कौन लरयौ है कसूभल बाग । खां महमदको नंद अलिफखा मेर करे पग केहूं न भागै । जोधा भये है जितने वसुधा पर कांन गह्यौ है दीवांनके आगै ॥६०३।। सेन अनंत झुकंत पहारी लरंत कहंत न असो बियौ है। मारत डारतपारथ जो अलिफखां कोधन हाथ हियौ है। स्रोनि समुद्र न घुटनि टुटत जुगिन जुथ अघाड पियौ है । मुडनि भार गई झुकि नार मनोहर हार जुहार कियो है ॥६०४॥ ॥ दोहा । मुड माल हर पहरि है, जानत कौन सुभाइ। सुभटनिके सिर देखि कै, गरै लेत है लाइ ॥६०५॥ मुड बिना तन धर परे, तरफत है इहं भाइ । मानों पगिया गिर गई, करिहै सैख समाइ ॥९०६।।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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