SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्योमखाँ रासा] रूपचंद वासो भगे, जबहिं परयो बहु भार। सत साहससौ अलिफखां, खरे रहे जूभार ।।८८६॥ जुद्ध सरकी धार पर, दई लिखे द्वै आँक । जो जूझै तिहिं सिर कटै, जो भाजै तिहि नांक ॥८८७॥ अंक वि दीसे जुद्ध समै, जानहू सेवक स्वांम । जे आगे ते दस गुने, पाछे के नहिं काम ॥८८८।। पांनिपु अपनी राखि है, सूरा यह सुभाइ । जिय तन हान न गनत है, जो रज नांही जाइ ॥८८६॥ सूरबीर अरु मीन जल, इनको येक सुभाइ । तरफि तरफि दोऊ मरै, जो पानी घटि जाइ ।।८६०।। रहै न केहू हीन जल, सहे न दोऊ गार । सूरवीर पुनि मीनको, पानी ही सौ प्यार ।।८६१॥ येक बात.कवि जान कहि,, बढ्यौ मीन तें सूर । मीन मरै पानी घटे, सूर मरै जल पूर ।।८६२॥ रूप रूपचंदको गयौ, भाज्यो है बेहाल । सत नास्यो वासो नस्यो, डाढ़ी विन डढ़वाल ॥८६३॥ भार परयो दीवांन पर, जूझत अचल जूझार । येक वोर चहुवांन है, इक दिस सकल पहार ।।८६४॥ ॥सवईया॥ उतहिं पहारी इत संभरी नरेस धायौ उधम मचायौ जुध सुमिर इलाह जू ।. परी बहु मार करवार भई आर रतनारे रतनारे चले गहर अथाह जू । वाल तरु नाई बिध तीनों पनपाइ सिध आद अंत नीकौ करयौ करता निवाह जू ॥ कहा चली ढाढी भाट चारन कलावत की .. साहस 'अलिफखां सराह्यो पतिसाह ज ॥८६॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy