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________________ ५२ [कवि जान कृत भटी समेज़े जाइये, टुढी बटू नैपाल । बैरियाह डोगर खरल, अरवर सब बेहाल ||८५२॥ धोला खेरा, भेज़ि दल, मारि मिलायै धूरि । डारी भलै उखारि कै, सब दुर्जनकी मूरि ॥८५३।। ही पहार सरदार खां, जबहि भयो बस काल । तबहि पहारी फिर गये, उपज्यो बहुरि जंजार ।।८५४॥ श्री दीवांनजी कांगरै आये चौथी बार ॥ दोहा ।। जहांगीर पतिसाहन, लये अलफखां टेर । हुकम कर्यो तुम जाइ के, करहु पहारहिं जेर ॥८५५।। अलफखांन तसलीम करि, चल्यौ राइ जूझारः । गहर न लाई पंथमै, पैठ्यौ आइ पहार ।।८५६।। भाजे फिरै पहारीये, सनमुख आवत नाहि । छपते डोलहिं वोट लै, ज्यों सूरज तें छाहि.॥८५७।। काहलूर लै के लये, मडई और सुखेत । लीनौ बहुरि सिकंदरौ, अलफ़खान जस हेत.।।८५८।। उतहि तुरक को नां गयो, बिना सिकंदर साह । कै उत पहुंचे अल फखाँ, साहस सत्त अगाह ।।८५६।। भाजे फिरहि पहारिये, छटि गये घर बार। सार धार नां सहि सके, डोले धार पहार ॥८६०॥ तवहि पहारी येक है, कीनौ यहै विचार। लरहि जाइ दीवानसौ, सब मिल. एक बार ॥८६॥ जगत सिघ पैठाँनिया, अरु विसंभर चंव्याल । चद्रभान गढ़ भौनकौ, पुनि फतू जसवाल ॥८६२।। भोपत और अमूल पुनि, बूला सूरजचद । ठकर कल्यानां स्यामचंद, सबै जुद्ध केकद ॥८६३। जगतमाल अलिया चढे, आयो राइ कपूर । कौन कौन कौ नांव ल्यौं, मव ही भये हजूर ।।८६४॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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