SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [कवि जान कृत सूरजमल फिरै बनमै मनको विधु ठांव के ठांव पुरायो । खोद मुवौ बिल चोखर ज्यौ छत्रपत्तिभवंगम कोप छिड़ायो ।।८०२॥ अनगंन दल आयो साहि जहांगीर जू के बाटे हू न आवै गढ़ कांगुरै के कांगुरे । डर भयो घर घर थर हरो गिरवर भाजि न सके पहारी कीने भव पांगुरे । चंब कीनं छटै वोट ढाहे वैसे कोट कोट उडि है तू नाल चोट पविहि न गागरे । कहै कबि जान सुनि सूरजमल अजांन बैग आइ पाइँ गह दांन जिय मांगुरे ॥८०३।। ॥ दोहा ॥ सूरजमलकौं खेद कै, बहुरै दल पतिसाहि । जीति फिरे जीतन चले, नगर कोटकी चाहि ॥८०४।। अलिफखांन दीवानकू, दयो नूरपुर थान। सूरजमल को बहुत डर, रहि न सके को पान ।।८०५।। नगर कोट राजा गयो, सूरजमल सुनि बात। आयो दल बल साजि कै, पै कछु बनी न घात ।।८०६॥ साहसीक मल अलिफखा, जाके निहचल पाइ। लरि न सक्यौ दीवांनसू, सूरज सनमुख आइ ।।८०७|| सूरज नांव कहाइ है, उलटौ सबै सुभाइ । छप्यौ रहत है द्योसकू, निसको निकसत अाइ ॥८०८|| जाइ कांगरै विक्रमां, करी अरिनसौ बात। करि आयो भुस लीपनो, नांही बनी कछु घात ।।८०६।। आइ नूरपुर बिक्रमां, यह कह्यौ दीवांन । काहलूर ऊपर चढ़ौ, हौ रहिहाँ इह थांन ।।८१०॥ उतते चढ़े दीवांन जू, जस नीसांन बजाइ । तबहिं तुड करि ग्वारियर, डेरे दीनै आइ ॥११॥
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy