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________________ क्यामखां रासा] लूनकरन परतापसी, राजा जोधा माल । उनको नातौ देखि कै, होहुँ अवहि प्रतिपाल ।।७१५।। इन पांचों दीनी सुता, सु तो इहिं दिन काज । तुम विन असौ कौन है, जिहि भुमियांकी लाज ॥७१६।। तव दल थांभे अलिफखां, दलपति भयो उवार । फिर पठयो पतिसाह पैं, कीनी प्यार अपार ।।७१७|| टेरयो सेख कवीर जव, दिल्लीके सुलतांन । आयो वाकी ठौर तव, इतहि मुबाराखांन ।।७१८|| . भिवांनी फतह की । ॥ दोहा।। तव दीवांन पठान मिलि, चले भिवानी कोप । आगे जाटू जावले, रहे भलें पग रोप ।।७१६।। लागे गढ़ई जाइ कै, गोली चली अपार । को आगै पग नां धरै, डरपैक असवार ।।७२०॥ तव उमड़े दीवांन दल, डारी गढई तोरि । . जो जाटू सनमुख भयो, मारयो मीड मरोरि ॥७२॥ दंत तिनौलेकै भजे, जाटू तजिकै ठांव । सुजसु भयो दीवांनको, लूटि लयो सब गांव ॥७२२।। मेवातकी फौजदारी पाई बोलि लयो पतिसाहन, अलिफखानु सिरमौर । कह्यौ अवहिं मेवात पर, करहु येक तुम दौर ।।७२३।। दै हय गज सरपाव अरु, मन सव बहुत बढ़ाइ। विदा किये मेवातकों, चाहुवांन चित चाइ ॥७२४॥ आवत हीसारां प्रथम, मारि मिलाई छार । जे भाजे तेई बचे, मरे करी जिन रार ||७२५।। कारहंडै डेरे कीये, फिरू सारां की मार । मेव मिले उत आइ के, असी मानी हार ॥७२६।।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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