SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर जान और उनके ग्रन्थ ऋदिसूरिजी महाराजके दर्शनार्थ चुरूम मेरा और भंवरलालका जाना हुश्रा, और वहाँसे विदुषी साध्वी श्री विचक्षणश्रीजीके वन्दनार्थ अॅझणू भी गये । वहांके जैन उपाश्रयमें स्थित यतिजीके संग्रह के खंड में हमें जान कविके तीन अन्यों (कायम रासो, अलफखाकी पैडी, बुद्धिसागर ) की उपलब्धि हुई, जिनमेसे कायमरासो एवं अलफखांकी पेंढी दोनों ऐतहासिक काव्य थे, पुर्व अलफखांके सम्बन्धमें रचे गये थे। उसकी प्रारंभिक पंक्तियोंको पढ़ते ही यह तो निश्चय हो गया कि जान कवि अलफखां नहीं, पर उसका पुत्र था। फिर सूचमतासे विचार करनेपर उसका नाम उपयुक्त बुद्धिसागर अन्यकी लेखन प्रशस्तिम उल्लिखित न्यामतखां हो, जो कि अलफखांके पांच पुत्रोंमे द्वितीय थे, सिद्ध हुया । इसकी सूचना सर्वप्रथम हमने हिन्दुस्तानीके अप्रेल, जून १९४५ के अंकमें कायमरासोका परिचय प्रकाशित करते हुए दी । वैसे "कविवर जान और उनके ग्रन्थ" नामक लेख इस सम्बन्धमें पहले लिखा जा चुका था, पर कागजको दुष्प्राप्यनादिके कारण वह बादमें १९४९ की 'राजस्थान भारती' में प्रकाशित हुया । इस लेख में मैंने जान कविके ६ ग्रन्थ अपने संग्रहमें एवं अन्य ग्रन्थोंको प्रतियां अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, राजस्थान रिसर्च सोसाइटी, सरस्वती भंडार (उदयपुर) एवं एशियाटिक सोसाइटीमें प्राप्त होनेका उल्लेख करते हुए रावत सारस्वतसे प्राप्त ७० ग्रन्धोंकी सूची दी। उपर्युक्त १७ ग्रन्योंमेसे बारह ग्रन्थोंके नाम तो इन ७० ग्रन्थोंमें मिल जाते हैं, पर ५ ग्रन्थ उनसे अतिरिक्त मिले । अतः जान कविक्री कुल ७५ रचनाओंका परिचय इस लेखमें मैंने दिया था। पीछेसे हमारे संग्रहके बुद्धिसागर ग्रन्यके सम्बन्धमें अनुसन्धान करनेपर वह ७० ग्रन्योकी सूचीमे उल्लिखित बुद्धिसागरसे भिन्न ही सिन्छ हुआ, अतः रचनाओंकी संख्या ७६ हो जाती है। इन अन्योंके रचना-कालपर विचार करनेसे कविकी संवतोल्लेख वाली सर्व प्रथम रचना शतकत्रय प्रतीत होती है, जिसकी रचना १६७१ में हुई है, और अन्तिम संवतोल्लेख वाली रचना जाफरनामा पदनामा है जो सं० १७२१ में रचित है। अतः कविने ५० वर्पतक निरन्तर साहित्यकी सेवा की और इस तरह ७० वर्षकी श्रायु अवश्य पाई सिद्ध होता है। उपलब्ध ग्रन्थों में सबसे बडा ग्रन्थ बुद्धिसागर है जो कि ३५०० श्लोक परिमाण का है । उसके बाद परिमाणमें कविवल्लभ एवं कायमरासोका स्थान प्राता है । कविकी भाषा और शैली सुन्दर है । वह श्राशु कवि था। उसने कई ग्रन्थोंके २, ३, ८ प्रहरमें व १-२-३ दिनोंमें रचे जानेका उल्लेख स्वयं किया है। रसतरंगिणी, बुद्धिसागर अादि ग्रन्थोंसे स्पष्ट है फि कवि संस्कृत एवं फारसीका भी अच्छा ज्ञाता था। प्रथम ग्रन्थका अाधार संस्कृत ग्रन्थ है, दूसरेका फारसी ग्रन्थ । कविका अध्ययन भी बहुत विशाल था । हिन्दी भाषापर तो इसका विशेष अधिकार था ही । अलंकार-रस, काव्य-शास्त्र, वैद्यक एवं इतिहास संवन्धी ग्रन्थोंकी रचना करनेके अतिरिक्त आख्यानक प्रेम काव्य लिखना उसका प्रिय विषय रहा प्रतीत होता है। [टिप्पणी-सूफी काव्य संग्रहमें श्रीयुतपरशुरामजी चतुर्वेदीभी लिखते हैं कि इस कविकी विशेषता इसकी रचनाओंकी पंक्तियोंकी द्रुतगामितामें देखी जा सकती है । जान पडता है कि इसकी प्रत्येक पंक्ति
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy