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________________ ४६ क्यामखां रासा] जोली दौलतखां जिये, साके किये अपार । अंत न कोउ थिर रहै, या झूठ संसार ।।५७५।। दीवान नाहरखांके पुत्र १ फदनखां, २ वहादरखां, ३ दिलावरखां । ॥ दोहा ॥ बड़ी फदनखां जानियो, और वहादरखांन । पुनहि दिलावरखांन है, जानि लेहु कहि जांन।।५७६।। नाहरखांको वखान . ॥ दोहा ।। जवहि भये बस कालके, दौलतखां सिरमौर । तव नाहरखां जांन कहि, भयौ पिताकी ठौर ।।५७७॥ करता दीनी लच्छिमी, निसदिन करत कलोल। पातुर चातुर रूप वर, बहुत लई है मोल ॥५७८।। नचे अखारौ रैन दिन, छिन छिन कौतिग होइ । राज मांन दीवान ये, रागलीन है दोइ ।।५७६।। मरद मुछार जुझार है, उठ्यो लहे बहु वंक । भी मानत है भोमिया, करै सिंवारी संक ॥५८०॥ वीकावतनै सोचि के, दूरि करि चित चोख । लूनकरन बेटी दई, उपज्यो अति संतोख ।।५८१।। पहलै वोल कियो हुती, जीवत लूनकरन । दई वजीरनि व्याहि के, आये चरन सरन ॥५८२।। जवहि सिकंदर मरि गयो, भयो बिराहिम साह । वाकी हनि दिल्ली लई, वावर दई इलाह ॥५८३।। भयो हमाउं पातसाह, वावर पाछै जान । सेरसाह पाछै भयो, समये नाहरखांन ॥५८४॥ सेरसाह आदुर दयौ, नाहरखांनु निहार । मामूं कहि बाते कहत, और करत बहु प्यार ॥५८५॥ सेरसाह असे कह्यौ, नगर आपुनै जाहु । कर्यो फतिहपुर पेसकस, घर बैठे तुम खाहु ॥५८६।।
SR No.010643
Book TitleKyamkhanrasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1953
Total Pages187
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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