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________________ संस्कृत, प्राकृत, पाली आदि प्राचीन भाषाओं के साथ हिन्दी और गुजराती पर इनका समान रूपसे अधिसार है। वीचमें जब यह · सुना कि ६० वर्षकी उम्र होने पर भी वे अंग्रेजीका अभ्यास कर रहे हैं तो बहुत आश्चर्य हुआ। अव भी उनकी नित्य नया नया ज्ञान ग्रहणकी प्रवृत्ति सूखने नहीं पाई है। 'जो कुछ पढ़ा गया वही वहुत है! ऐसा विचार न करके जहाँ तक जीते हैं निरन्तर ज्ञानोपासना और ज्ञानवृद्धि करते रहना ही उनकी जीवन-साधना व मंत्र है। प्रज्ञाचक्षुकी अवस्थामें जिस तमन्ना, साधना व अध्यवसायसे इतना महान ज्ञानसंचय किया उसकी शत शत वलिहारी है ! सौभाग्यवश ७५ वर्षकी उम्र होने पर भी आज उनमें युवकों-सा उत्साह है, संयमी और अप्रमादी जीवन है, स्वयं सीखते और दूसरेको सिखाते रहनेकी प्रवृत्ति निरन्तर चालू है। उनके नये नये शिष्य और शिष्याएँ अच्छे रूपमें तैयार हो रहे हैं । उनकी स्मृति और शक्तिमें शैथिल्य नहीं आ पाया, जिससे अभी उनसे बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है, इस आशासे मेरे हृदयमें हर्ष हिलोरे ले रहा है। - पंडितजीका सम्मान अभी राष्ट्रभाषा प्रचार समितिने किया और अव अभिनन्दन समारोह भी शीघ्र ही होने जा रहा है। पर ये तो हम लोगोंके आदर और भक्ति के सूचक हैं। पंडितजीका सम्मान तो भारतके नामी विद्वानोंने किया हैं । जो भी उनके ग्रन्थों और लेखोंको पढ़ते हैं और उनके संपर्कमें आते हैं उनका मस्तक पंडितजीके प्रति नत हुए विना नहीं रहता। आनेवाली पीढ़ियोंसे उनका महत्त्व और भी अधिक प्रकाशमें आयगा; और उनका मौलिक लेखन और सम्पादन अनेक व्यक्तियोंको लम्बे काल तक मार्गप्रदर्शन करता रहेगा। अन्तमें यह शुभाशा रखता हूँ कि पंडितजी जैसे प्रतिभामूर्ति हमारे समाजमें निरन्तर उदित होती रहे और जैन विद्वानोंने जो भारतीय साहित्यके समुत्थानमें महत्त्वपूर्ण योग दिया है वह कार्य और भी आगे बढ़ता रहे । पण्डितजीकी दीर्घायुकी मंगल कामना करता हूँ।
SR No.010642
Book TitlePandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandit Sukhlalji Sanman Samiti
PublisherPandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publication Year1957
Total Pages73
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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