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________________ संक्षिप्त परिचय : १७: इस प्रकार पंडितजी सदा ही क्रांतिकारी एवं प्रगतिशील दृष्टिकोणका स्वागत करते रहे हैं, अन्याय और दमनका विरोध करते रहे हैं, सामाजिक दुर्व्यवहारसे पीडित महिलाओं एवं पददलितोंके प्रति सहृदय वने रहे हैं। पंडितजी धार्मिक एवं सामाजिक रोगोंके सच्चे परीक्षक और चिकित्सक है । निवृत्तिके नाम पर प्रवृत्तिके प्रति हमारे समाजकी उदासीनता उन्हें बेहद खटकती है। उनका धार्मिक आदर्श है : मित्ति मे सबभूपसु - समस्त विश्वके साथ अद्वैतभाव यानी अहिंसाका पूर्ण साक्षात्कार । इसमें सांप्रदायिकता या पक्षापक्षीको तनिक भी अवकाश नहीं है। उनका सामाजिक प्रवृत्तिका आदर्श है --- स्त्री-पुरुप या मानवमात्रकी समानता । ___पंडितजी प्रेमके भूखे हैं, पर खुशामदसे कोसों दूर भागते हैं। वे जितने विनम्र हैं, उतने ही दृढ़ भी हैं । अत्यंत शांतिपूर्वक सत्य वस्तु कहने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं । आवश्यकता पड़ने पर कटु सत्य कहना भी वे नहीं चूकते । पंडितजीकी व्यवहारकुशलता प्रसिद्ध है। पारिवारिक या गृहस्थीके जटिल प्रश्नोंका वे व्यावहारिक हल खोज निकालते हैं । वे इतने विचक्षण हैं कि एक बार किसी व्यक्ति या स्थानकी मुलाक़ात ले लेने पर उसे फिर कभी नहीं भूलते; और जब वे उसका वर्णन करना शुरू करते हैं, तब सुननेवाला यह भाँप नहीं सकता कि वर्णनकर्ता चक्षुहीन है । वे उदार, सरल एवं सहृदय हैं। कोई उन्हें अपना मित्र मानता है, कोई पिता और कोई गुरुवर्य । ___ गाँधीजीके प्रति पंडितजीकी अटूट श्रद्धा है । बापूकी रचनात्मक प्रवृत्तियोंमें उन्हें बड़ी रुचि है । अपनी विवशताके कारण वे उनमें सक्रिय सहयोग नहीं दे सकते, इसका उन्हें बड़ा दुःख है। इन दिनों गुजरातके भूदान कार्यकर्ताओंने तो उन्हें अपना बना लिया है। पू० रविशंकर महाराजके प्रति पंडितजीको वड़ा आदर है । तदुपरांत 'गुणाः पूजास्थानं गुणिपु न च लिंगं न च वयः 'इस सिद्धान्तानुसार श्री. नारायण देसाई जैसे नवयुवकोंकी सेवा-प्रवृत्तिके प्रति भी वे स्नेह व श्रद्धापूर्वक देखते हैं। प्रवृत्तिपरायण निवृत्ति वनारससे निवृत्त होकर पंडितजी वम्बईके भारतीय विद्याभवनमें अवैतनिक अध्यापकके रूपमें काम करने लगे, पर बम्बईका निवास उन्हें अनुकूल न हुआ । अतः वे वापस वनारस लौट गये । सन् १९४७ में वे अहमदाबादमें
SR No.010642
Book TitlePandit Sukhlalji Parichay tatha Anjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandit Sukhlalji Sanman Samiti
PublisherPandit Sukhlalji Sanman Samiti
Publication Year1957
Total Pages73
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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