SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आध्यात्मिक पत्र तीव्र ताप बरसात इच्छती है व बादल जलरूप परिणम जाते है - ऐसे घनिष्ट सम्बन्ध (निमित्त-नैमित्तिक) जगतमे है; परन्तु इनके अस्थिर स्वभावको जानकर ज्ञानी इन्हे नही इच्छते; निमित्त - नैमित्तिक स्वभावके अभावरूप सहज नित्य निरिच्छक स्वभावको ही इच्छते है और यह ही योग्य भी है।... सहज ज्ञानामृतरस इच्छुक निहालचन्द्र [८] कलकत्ता २८-६-१९५३ धर्मप्रेमी निहालचन्द्रका धर्मस्नेह । कार्ड एक आपका लगभग पन्द्रह दिवस पहले मिला था, मै कार्यवश रांची गया हुआ था अतः जवाबमे विलम्ब हुआ । आशा है परम कृपालु गुरुदेव सुख-शान्तिमे विराजते होगे व आप लोग निरन्तर उनकी अमृतमयी वाणीका लाभ लेते होगे । यहाँ तो पुण्ययोग ही ऐसा नही है कि वहॉका लाभ शीघ्र-शीघ्र मिला करे । निवृत्तिके लिये जितना अधिक छटपटाता हूँ उतना ही अधिक इससे दूर-सा रहता हूँ, ऐसा योग अबके हो रहा है। कई बार तो फूट-फूट कर रोना-सा आ जाता है। शायद ही कोई दिवस ऐसा निकलता है कि बारम्बार वहॉका स्मरण नही आता होवे । किसीने कहा है कि "मिलत एक दारुण दुख देई । विछुडत एक प्राण हर लेई ॥" सो संयोगोकी अपेक्षा यहाँ तो ऐसे ही ऐसे संगमे रहना पड़ रहा है जहाँ कि दारुण दुःखका अनुभव हुआ करे। परम कृपालु गुरुदेव कहते है कि ऐसे दुःख-सुख भावोको पूर्णरूपसे, एकाकाररूपसे जीवको नही भोगना चाहिए । सम्यक् एकान्तरूपसे स्वरूपदृष्टिके बलसे सहज ही, अंशे-अंशे, जीव इनसे क्षणे-क्षणे सरकता
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy