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________________ [१७] * श्री सोगानीजीकी दृष्टिमें सांसारिक प्रसंग : समस्त लोक समुदाय विवाह जैसे प्रसंगको मांगलिक, शुभ व आनन्द-उमंगका महत्त्वपूर्ण अवसर मानता है। परन्तु श्री सोगानीजीने एक अन्तरंग साधर्मीको अपने पुत्रके विवाहका निमन्त्रणपत्र भेजा अवश्य, पर साथमे जो विचार उन्होने लिखे उससे उनकी सांसारिकप्रसंगोकी तुच्छता और सत् प्रतिकी अनन्य महिमा ही उजागर होती है । तदर्थपत्रांक : २७; कलकत्ता | ९-४-६२ का निम्न उद्धृत अंश दृष्टव्य है : D"बड़े पुत्रकी शादी ता. १६-४ की है। पुण्यवानोको शुभप्रसंगका योग है, उन्हे अशुभ प्रसंग पर बुलवाना ठीक नही है। फिर भी लौकिक व्यवहारवश दो पत्रिकाएँ भिजवाई है।" * निर्मानता : सर्व लौकिकजनोंको जहाँ हो वहाँ - घर, परिवार, समाजमे सर्वत्र अपने प्रभुत्व-मान-सम्मान-स्थान प्राप्तिकी अन्तरंग अभिलाषा निरन्तर वर्तती है । वही सच्चे आत्मार्थीकी ऐसे सभी प्रसंगोंसे दूर रहनेकी सहज वृत्ति रहती है । यदि उसकी विशेष योग्यता हो तो भी वह उसे गोपित रखना चाहता है । अपनी प्रसिद्धिका अभिप्राय उसे नही रहता । श्री सोगानीजीकी आत्मदशा अद्भूतरूपसे वर्तती थी परन्तु वे उसे प्रसिद्ध नही करना चाहते थे । फिर भी उनसे एक अन्तरंग साधर्मीने दूसरे ढंगसे अनुरोध किया कि : पूज्य गुरुदेवश्रीके निमित्तसे आपको आत्मबोध हुआ है, इस बातको जानकर उन्हे सहज प्रसन्नता होगी, अतः आपकी ज्ञानदशाके बारेमें गुरुदेवश्रीको बतलानेका विकल्प है ! तब उन्होने कहा : "कोई जाने न जाने, इसमें आत्माको कोई फायदा नहीं है । अनन्त सिद्ध हो गये है, ( लेकिन ) आजकल कोई उनके नाम तक भी नही जानता है ! असंख्य सम्यग्दृष्टि ( तिर्यच ) ढाई द्वीप बाहर मौजूद है, उन्हे कौन
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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