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________________ १९४ सम्यक् होगा । ६३०. ※ पू. गुरुदेव श्रीके एक घंटेके प्रवचनमे पूरी की पूरी बात आ जाती है । ६३१. * द्रव्यदृष्टि- प्रकाश ( भाग - ३) [ धार्मिक पर्वके दिनोमे श्री मदिरजीमे पू बहेन श्री - बहनकी भक्ति देखकर बोले ] ऐसी भक्ति मेरेमे नही है, इस बातमे तो मै अपनी क्षति देखता हूँ । ६३२. [ अगत ] G ※ -- [ श्रीमद् राजचद्रजीका पत्राक ४०८ पढकर प्रमोदसे निकले उद्गार - ] अहो ! क्या चीज़ [ तत्त्व ] रख दी है इसमे !! ६३३. * [ लगाव-प्रधान होकर चेष्टा करना ] - ऐसी मेरी प्रकृति नही है, फिर भी कोई योग्यता पड़ी होगी जो अपने स्वकालमे बाहर आ गई । [ ऐसी योग्यतावश भाई श्री राजकोटके हवाई अड्डेपर श्री लालचदभाईसे गले लगाकर मिले थे । ] [ द्रव्यमे पर्यायपरिणमनशक्तिरूप योग्यता होती है जो अपने स्वकालमे प्रकट होती है । उक्त वचनमे ऐसा द्रव्यानुयोगका सिद्धात स्पष्ट होता है । ] ६३४. [ अगत ] प्रश्न :- सम्यग्दर्शनके पहले आपकी कैसी दशा थी ? था उत्तर :- निर्विकल्पताके पहले विकल्पका इतना दुःख मालूम हुआ ऐसी दशा हुई थी - कि या तो देह छूट जायेगी या विकल्प फट जायेगा। तीसरी बात होनेवाली नही थी । [ निर्विकल्पदशाकी पूर्वभूमिकामे स्वरूप सम्बन्धित सूक्ष्म विकल्पमे भी इतना तीव्र दुख महसूस हुए बिना, विकल्प सहज छूट कर, निर्विकल्पदशा उत्पन्न नही होती ।] ६३५. [ अगत ] ※ निश्चयग्रंथ आत्मा है, निश्चयगुरु आत्मा है और निश्चयदेव भी आत्मा
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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