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________________ [३] बाकलीवाल परिवारकी कन्या अनोपकुंवरके साथ विवाह हुआ । कालक्रममे उनके दाम्पत्यजीवनसे पॉच पुत्रो व तीन पुत्रियोने जन्म लिया । जिनमेसे प्रथम पुत्रका ४-५ वर्षकी अल्पायुमे तथा दो पुत्रियोंका [ - श्रीमती आशालता व कुमुदलताका उनके विवाहोपरांत ] निधन हो गया। वर्तमानमे सबसे बड़े पुत्र श्री रमेशचन्द्र व उनके तीन अनुज क्रमशः श्री नरेशचन्द्र, श्री अशोककुमार व श्री अनिलकुमार तथा पुत्री श्रीमती कुसमलता मौजूद है । और वे सभी अपने पूज्य पिताश्रीके निर्दिष्ट पथ पर आनेका प्रयास कर रहे है। * मन्थन-काल: ___ यद्यपि श्री सोगानीजीके लिए बढ़ती हुई गृहस्थीकी आवश्यकताओकी सम्पूर्ति उस दुकानकी आमदनीसे करना अति कठिन था; तथापि उन्हे तद्विषयक कोई विशेष मानसिक उलझन नही रहती थी। ____परन्तु उनके कोई पूर्व संस्कारवश बालावस्थासे ही स्फुरित वैचारिक द्वंद्व अविच्छिन्नधारासे जो प्रवहमान था, वह दिन दिन वृद्धिगत होता गया । वह उन्हे न तो दुकान पर और न ही घर पर चैन लेने देता था। जीव-जगत, जीवन-मृत्यु, सत्यासत्यकी जटिल समस्याओसे जूझता हुआ उनका घायल मन बार बार प्रश्नातुर हो उठता । क्या है सत्य ? कौन हूँ मै ? कहाँ है अखण्ड शान्ति ? कहाँ है इन ज्वलंत प्रश्नोका समाधान ? इस तरह एक ओर पारिवारिक दायित्वका बढ़ता हुआ दवाव और दूसरी ओर उक्त प्रकारकी वैचारिक मनःस्थिति । दोहरी मानसिकताका यह द्वंद्व प्रवलसे प्रबलतर होता गया । नीरव निशीथके सायेमे जब निद्रालस संसार स्वप्नोमे खोया रहता, वे उन्नीद्र होकर घरकी छत पर चक्कर लगाते रहते । धूधले उदास आकाशमे वे किसी प्रकाशमान ध्रुव तारेकी खोज करते रहते । मन होता, पॉर्वोमे पंख वॉधकर उड़ता हुआ चला जाऊँ इस घुटन और कुंठाओकी सीमाके उस पार, जहाँ अनवरत शान्तिका अखण्ड साम्राज्य स्थापित है। अपनी ही
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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