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________________ तत्व १६१ मुँहमे पानीके साथ कचरा आते ही खदबदाहट होनेसे उसे मुँहसे निकाल (फेक) दिया जाता है। ऐसे ही रागका बेदन तो कचरा हे, ज्ञानी उसको अपना नहीं मानते । ज्ञानीको किसी भी क्षण रागमे अपनापन आता ही नही। ४४९. नानीको राग बोशम्प लगता है। भारी चीज़के ऊपर हलकी चीज़ हो तो बोश नही लगना लेकिन हलकी चीज़ पर तो भारी चीज़का बोझा लगता ही है। ऐसे, शानीको राग बोसारुप लगता है, खटक्ता है, सुंचता (सालता) । ४५०. विचार और धारणा वस्तुको पकड़नेकी सामर्थ्य ही नही है । अज्ञानी वस्तुको पकड़ना [ .; नी है । विचारमे तो वस्तु परोक्ष ओर दूर रह जाती है । ४५१. प्रश्न :- प्रतिकून मंयोगमे तो दुःख लगता है लेकिन विकारीभावमे दुःख नहीं लगता ? उत्तर :- यह तो बहुत स्थूलता है । विकारीभाव हुआ - वही प्रतिकूल संयोग है, वही दुःख है, उसका दुःख लगना चाहिए । ४५२. आत्माके एक-एक प्रदेशमे अनन्त-अनन्त सुख भरा हे - ऐसे असंख्य प्रदेश सुखसे ही भरपूर है; चाहे जितना सुख पी लो ! कभी खुटेगा ही नहीं । हमेशा सुख पीते रहो फिर भी कमी नही होती । ४५३. सोचते रहनेसे तो जागृति नही होती, ग्रहण करनेसे ही जागृति होती है। सोचनेमे तो वस्तु परोक्ष रह जाती है और ग्रहण करनेमे वस्तु प्रत्यक्ष
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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