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________________ ७४ द्रव्यदृष्टि-प्रकाश (भाग - २) ज्ञानी ! अहो ! ज्ञानीकी गवेषणा ! अहो ! ज्ञानीका ध्यान ! अहो ! ज्ञानीकी समाधि ! अहो ! उनके वचनका योग ! - अन्तरकी बातमे वीतरागताके भासमे ये उद्गार है ! अहा...हा...हा...हा...! भगवान आत्मा, निकाली तत्त्व, ऐसे निश्चयस्वरूपमे सक्रियता या बन्ध-मोक्ष कैसे हो ? निश्चय मोक्षमार्गरूप परिणमन भी सक्रिय है। भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्य द्रव्य निष्क्रिय है। निष्क्रिय अर्थात् परपदार्थकी क्रिया करे ऐसा नही, राग करे यह भी निष्क्रिय नही, लेकिन मोक्षमार्गकी पर्याय भी जिसमे नही है । वस्तु तत्त्व निष्क्रिय, वह मोक्षकी सक्रिय पर्यायको कैसे करे ? शुद्ध निश्चयनयसे न बन्ध है, न मोक्ष है। वास्तवमे अशुद्ध निश्चयनयसे ही बन्ध है । अशुद्ध निश्चय अर्थात् व्यवहार पर्याय एकदेश शुद्धनय है अर्थात् व्यवहार है, इसलिये बन्धके नाशका यत्न भी अवश्य करना चाहिए । अर्थात् ध्रुवका प्रयत्न अन्तर्लक्ष करना चाहिए । यहाँ यह अभिप्राय है कि, सिद्ध समान अपना शुद्धात्मा, अर्थात् शुद्ध...शुद्ध...शुद्ध...द्रव्य वस्तु आत्मा, वीतराग निर्विकल्प समाधिमे लीन पुरुषोको उपादेय है । भगवान आत्मा, उस ओरकी बिना रागकी श्रद्धा, ज्ञान और शान्ति, ऐसी अरागी - वीतरागी श्रद्धा, ज्ञान और शान्तिके कालमे, यह आत्मा उपादेय अर्थात् दृष्टिमे आता है । यह पर्याय - बिना राग की हुई, निर्विकल्प अभेद परिणति हुई इस पर्यायमे, शुद्धात्मापर लक्ष है, वह उपादेय है । ध्रुव उपादेय है। ____भगवान आत्मा, वस्तु जो ध्रुव...ध्रुव...ध्रुव...उसपर दृष्टि देनेवाली दशा, उसमे स्थिर होनेवाली दशाको निर्विकल्प शान्ति कहते है । उसमे यह (विद्यमान) द्रव्य उपादेय है, अन्य सब हेय है । क्षायिक सम्यक्त्वकी पर्याय प्रगट होनेपर भी, द्रव्यकी उपादेयताके कालमे हेय है - एक ही बात है । क्षायिक सम्यक्त्व, जो द्रव्यके लक्षसे होता है सो भी हेय है; क्योकि द्रव्यमे ज़ोर देनेका है; उसमेंसे नयी पर्याय प्रगट होती है। क्षायिक समकितके लक्षसे चारित्र नही होता है । निश्चय मोक्षमार्ग हेय है, मोक्ष भी हेय है; द्रव्य ही उपादेय है । यह तो "परमात्मप्रकाश"
SR No.010641
Book TitleDravyadrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
PublisherVitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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